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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/२०७

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भाषाटीकासमेता ( १९९ ) शांतस्वभाव ब्राह्मणजाति स्त्रीवेषधारी मंत्रज्ञ चरस्वभाव श्वेतरंग आग्नेय- दिशापति कफप्रधान खट्टारस श्याम और कुंचित केश ये गुण शुक्रके हैं ॥ ६ ॥ कृष्णस्तमःकृशोवृद्धःषंढोमूलांत्यजोऽलसः ॥ शिशिरः पवनःरःपश्चिमो वातुलःशनिः ॥ ७ ॥ कृष्णरंग तमोगुण कृशअंग वृद्धावस्था नपुंसक मूलवस्तु चांडालेश आलसी_शिशिरऋतुका स्वामी वायुधातु करस्वभाव पश्चिम दिशाका स्वामी वाचाल ये रूप गुण शनिके हैं ॥ ७ ॥ राहुर्धातुः शिखीमूलं शेषमन्यच्चमंदवत् || चिंतनीयं विलग्नेशात्केंद्रगाद्वाबलाधिकात् ॥ ८ ॥ राहु धातुप्रधान जटाधारी मलवस्तु है, शेष गुण शनिके तुल्य जानना , केतु भी ऐसाही जानना, लग्न वा लग्नेश अथवा जो ग्रह सर्वोत्तम बली है उसके अनुसार प्रश्नमें ल ग कहने विशेष गुण तथा राशियों के गुण प्रथम- तंत्रसंज्ञाध्याय में चकन्यास सहित प्रकट लिखे हैं ॥ ८ ॥ अथ भावनिर्णयः । सौख्यमायुर्वयोजातिरारोग्यंलक्षणं णम् || केशाकृती रूपवर्ण स्तनोयिं विचक्षणैः ॥ १ ॥ ख, आयु, अवस्था, जाति, नैरुज्य, शरीरलक्षण, गुण, केश, आकृति, रूप और रंग इतने विचार लग्नभाव में विचक्षणोंको विचारणीय हैं ॥ १ ॥ मुक्ताफलंचमाणिक्यरत्नधातुधनांबरम् || हयकार्य्याध्वविज्ञानं वित्तस्थानाद्विलोकयेत् ॥ २॥ मोती मांणिक आदि रत्न, सुवर्णादि धातु वत्र अश्वका मार्ग संबंधी ज्ञान इतने वस्तुके विचार दूसरे भावसे करना ॥ २ ॥ भगिनी आतृभृत्यानांदा सकर्मकृतामपि ॥ कुर्वीतवीक्षणं विद्वान सम्यग्दुश्चक्यवेश्मतः ॥ ३ ॥ बहिन भाई, नौकर दास और कार्य करनेवाला उपलक्षणसे व्यापार पराक्रम भी विद्वानोंको तीसरे भावसे विचार करना योग्य है ॥ ३ ॥ .