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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१९३

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भाषाटीकासमेता । ( १८५ ) दिनका दिनप्रवेश हो उसमें 1 न्यून करके जोडदेना, कला विकला वही रहेंगी यही दिनप्रवेशका सूर्य स्पष्ट होगा इष्टकाल निकालनेकी युक्ति पूर्वो- क्त ही है. उपरांत इस यके ग्रहस्पष्ट भावस्पष्ट करके चंद्रमा और उनके नवांशवशसे मासप्रवेशतुल्य फल पंडितोंने कहना ॥ १६ ॥ अनुष्टु० - चतुष्कमिथिहेशादिदिनमासाब्दलग्नपाः ।। एषांबलीतनुंपश्यन्दिनेशः परिकीर्तितः ॥ १७ ॥ मुंथेश १ त्रिराशीश २ जन्मलग्नेश ३ दिनका सूर्य्यराशीश रात्रिका चंद्रराशीश ४ दिनलग्नश ५ मासलग्नेश ६ वर्षलग्नेश ७ ये दिनप्रवेशमें अधिकारी हैं इनमेंसे लग्न देखनेवाला दिनेश होता है विचारके पूर्वोतही फल कहना ॥ १७ ॥ उपजा ० - त्रिकोणकेन्द्राय गताशुभाश्चेचंद्रात्तनोर्वा बलिनःखलास्तु || षत्र्यायगास्तत्रदिनेसुखानिविलासमानार्थयशोयुतानि ॥ १८ ॥ दिनप्रवेशके फल कहते हैं कि, शुभ ग्रह बलवान् लय वा चंद्रमासे केंद्र १ | ४|७|१० वा त्रिकोण ५१९ में हों तथा पापग्रह ३ | ६ | ११ स्थानों में हों तो इस दिनमें विलास सन्मान धन और यशसहित सुख होये १८ ॥ उपजा ० - पडष्टरिः ष्फोपगतादिनाब्दमार्सेथिहेशाःखलखेटयुक्ताः || गद्प्रदामानयशोहराश्च केंद्रात्रकोणायगताः सुखात्यै ॥ १९ ॥ दिनेश वर्षेश मासेश और मुंथेश पापयुक्त ६/८ | १२ स्थानों में हों तो इस दिन रोग देते हैं मान तथा यशकी हानि करते हैं जो केंद्र त्रिकोण और ग्यारहवें हों तो सुख देते हैं ॥ १९ ॥ इंद्रव ·- लग्नांशकः सौम्यरवगैः समेतोदृष्टोपिवामित्रदृशेंदुनापि ॥ नैरुज्यराज्यादिशरीरपुष्टिर्मासोक्तिवद्दुःखमतोन्यथात्वे ॥२०॥ लग्नका अंश वा उसका स्वामी शुभग्रहोंसे युक्त वा दृष्टहों तथा चंद्रमा उसे मित्रदृष्टि से देखे तो नीरोगता राजप्रबंधादि सुख शरीरकी पुष्टि होवे जो वे निर्बल बा६।८।१२ स्थानों में हों तो मासोक्त तुल्य दुःख होवे ऐसेही सभी भावोंके अंशोंसे प्रत्येक भावोक्त शुभाशुभ कहना ॥ २० ॥