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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१८४

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( १७६). ताजिकनीलकण्ठी । अंतर्दशा में प्रथम दशापति अर्थात् जिसका अंतर है तदनंतर जिसक्रमसे उक्त दशाका न्यास है वैसेही सभी ग्रह लिखने अंतर्दशा स्वामीकाभी चारप्रकारका बल देखके फल कहना, जैसे अंतर्दशापतिसे शुभग्रहोंकी दृष्टि वा योग हो उसके अनुसार स्थान उच्चनीचास्तोदय में दशेशका फल शुभाशुभ कहना ऐसेही पापयोग दृष्टिसेमी अंतदशाका फल जानना ॥ १७ ॥ अनुष्टु० - चंद्रारजीवाः सौम्येज्यशुको विविधुस्तयाँ || मंदेज्य शुक्राः सूयँ दुभौमाः सौम्येज्यसूजाः ॥४८॥ जीव शुक्रा: सूर्य्यादेः शुभाअं देशाइमाः || अन्येषामशुभाज्ञेया इति वामनभाषितम् ॥ ४९ ॥ सुपंकी दशा में चंद्रमा मंगल बृहस्पति चंद्रमाकीमें बुध बृहस्पति शुक्र, मंगलमें सूर्य्यं चंद्रमा बुधमें शनि बृहस्पति शुक्र बृहस्पतिमें सूर्य चंद्रमा मंगल शुक्रमें बुध बृहस्पति शनि और शनिमें बृहस्पति बुध शुक्रकी अंतर्दशा शुभ फल देती है. यह बामनाचार्य ने कहा है, परंतु ऐसा फल वर्तमान में यथार्थ मिलता नहीं है, शुभाशुभ ग्रहोंका बलावल विचारसे फल यथार्थ मिलता है ॥ ४८ ॥ १९ ॥ इति महीधरकृतायां नीलकंठीमा ० दशाफलाध्यायः ॥१३॥ अथ ग्रहाणां भावफलानि । उपजा ० - सूर्य्यारमंदा स्तनुगाज्वरार्तिधनक्षयंपाप गिंदुरित्थम् ॥ शुभान्वितःपुष्टतनुश्चसौख्यंजीवज्ञशुका धनराज्यलाभम् ॥ ५० ॥ अब ग्रहोंके भावफल कहते हैं कि सूर्ध्य मंगल शनि प्रत्येक वा सभी लग्नमें हों तो ज्यर संबंधी पीडा धनहानि करते हैं. पापयुक्त चंद्रमाभी लग्नमें यही फल देता है जो पूर्ण और शुभयुक्त हो तो सुख देता है पर अल्पमें अल्प अधि कमें अधिक ऐसा बुद्धिसे समझ लेना तथा बृहस्पति बुध शुक्र लग्न में धन और कुलानुमान राज्यसुख देते हैं, बुध लमका केवल वा सशुभ हो तो हर्ष देता है ॥ ५० ॥ O ० उपजा० - चंद्रज्ञ जीवास्फुजितोधनस्थाधनागमंराज्य सुखचदधुः ॥ पापाघनस्थाधनहानिदाः स्युनृपाद्भयंकार्य्यविघातमार्किः ॥ ५१ ॥ धनस्थान में चंद्रमा बुध बृहस्पति और शुक्र धनागम तथा राज्यसुख