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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१७०

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( १६२) बु. वाजिकनीलकण्ठी । हीनांशादिक्रमः वृ. सू.. शु. ८ ९ १६ २ २८ २. मै.. | श.' १९.१९२१ ५७ ५७ ८ ३ २३ ३६ ४४ २६ चं २८ १६ ० ० · उ॰जा॰ - न्यूनविशोध्याधिकतःक्रमेणांशांद्यंविशुद्धांशकशेषकैक्यम् ॥ सर्वाधिकांशोन्मितमेवतत्स्यादनेनवर्षस्यमितिस्तुभाज्या ॥ २ ॥ सभीसे न्यूनांश जो ग्रह है वह उससे अधिकांशमें घटावना, नः वह अधिकांशभी उससे अधिकांशमें घटावना, ऐसेही सभी घटायके अंत्यमें जो ग्रह सभीसे अधिकांश है उसके तुल्य सब हीनांशोंका योग होगा, तब ठीक समझना. उदाहरण- सबसे हीनांश बुध २ | १८ |२८ अंशादि है यह यथा - स्थित रहा, इसके आगे इससे अधिकांश लग्न ८ | ५७ । २ है इसमें बुध घटाया तो ६ । ३८ । ३४ यह लग्नके पात्यांश हुये, अब इसके आगे सूर्य्य ९ । ३६ । ५७ है इसमें लयांश ८॥५७ १२ घटाया, शेष ९ । ३९ । ५५ यह सूर्य्य हुआ, ऐसेही सभीको पात्यांश करके अत्यमें सर्वाधिकांश चन्द्रमा २८ | १६ | ३१ है इतनाही सभीका योगभी है, यह निश्वयार्थ पात्यांशाः युक्ति है-हीनांश करके भी चन्द्रमा सर्वाधिकांशही. बु. ल. सू. शु. बृ. म. श. चं रहता है और पात्यांश करके सब अंशादिकोंके २७ २ ० १ ६ योगसे सर्वाधिकांशही होता है, अंत्यके सर्वाधिक ३४/५५२९/११/३२५५२८ शसे वर्षकी मिति सौरकी ३६० वा सावनकी ३६५।१५। ३१। ३० से भाग देना जो लाभ हो वह वर्षमें लब्धध्रुवांक C ३८ ३९७ ३९३३५९ १९ हागा ॥ २ ॥ उपजा० -शुद्धांशकाँस्तान्गुणयेदनेनलब्धध्रुवांकेन भवेदशायाः ॥ मांनंदिनाघंखलुतद्ब्रहस्य फलान्यथासांनिगदेत्तशास्त्रात् ॥ ३ ॥ उक्त प्रकारके लब्ध ध्रुवांकसे प्रत्येक ग्रहके पात्यांशादि गोमूत्रिका क्रमसे वा हीनजाति पिंड करके गुणना, दिन घटी पलात्मक ३ अंक. ·