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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१६४

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ताजिकनीलकण्ठी । वर्षेश सूर्य बलसहित चतुर्थ स्थानमें हो तो पितृपितामहादिकोंका उपा- जिंत राज्य वा कोई अधिकार मिले, जो ऐसाही सूर्य ग्यारहवाँ हो तो राजाके उत्तम अमात्य ( वजीर ) आदिकोंसे मैत्री होवे ॥ २ ॥ || अनुष्टु० - रविस्थानेंथिहालग्नेखेवाराज्याप्तिसौख्यदा नीचेकः पापसंयुक्तोभूपाधवधंदिशेत् ॥ ३ ॥ जन्मके सूर्य्यस्थित राशिकी सुन्था वर्षके लग्न वा दशम स्थानमें हो तो राज्यप्राति और सुख देती है, और वर्षेश, सूर्य्य नीच राशिका दशम स्थानमें पापयुक्त हो तो राजासे मृत्यु वा बंधन कैद होना कहना ॥ ३ ॥ अनुष्टु ० -- सिंहेरविर्बलीखस्थःस्थानलाभोनृपाश्रयः || स्थानांतराधिकप्राप्तिरिन्दुरारपदेवली ॥ ४ ॥ जन्मका सूर्य्यं सिंहराशिमें हो और वर्ष बलवान होकर दशम स्थानमें - हो तो नवीन स्थानप्राप्ति और राजाका आश्रयमी होवे और जन्मको मंगल स्थित राशिका वर्षमें चन्द्रमा हो तो अन्य स्थान में अधिकारप्राप्ति चा राज्यप्राप्ति होवे ॥ ४ ॥ . अनुष्टु०-खेशलग्नेशवर्षेशेत्थशालोराज्यदायकः || वर्षेशेराजसहमे ऽर्केथशालोमहान्नृपः ॥ ५ ॥ दशमेश लग्नेश और वर्षशका परस्पर इत्यशाल हो तो राज्य देता है और चर्पेश राजसहममे होकर सूपसे इत्थशाली हो तो महाराजा होवे ॥ ५ ॥ अनुष्टु० - शनिस्थानेकुजः पश्यन्मुथहांपापकर्मतः || नृपभीतिवित्तनाशंदद्यादशमगोयदि ॥ ६ ॥ जन्मकी शनिस्थित राशि वर्षका मंगल दशमस्थान में हो और मुन्थाको देखे तो कुकर्मसे राजभीति और धननाश होवे ॥ ६ ॥ अनुष्टु० - ईहशेत्रिनवस्थेस्मिन्दग्धनष्टेऽघसंचयः ॥ मन्दोऽव्दपोऽधिकारीत्रिधर्मंगोधर्मवृद्धिदः ॥ ७ ॥ जन्मकी शन्याक्रांत राशिमें वर्षका मंगल तीसरे वा नवम स्थानमें नष्टबल दग्ध वा अस्तंगत हो तो पुण्यनाशद्वारा पापवृद्धि होवे और