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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१४१

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भाषाटीकासमेता । ( १३३) ०. अनुष्टु० - अर्थार्थसहमेशौ चेच्छु भैमित्रहशेक्षितौ ॥ बलिनौसुखतोलाभप्रदौयत्नादरेईशा ॥ १० ॥ धनभावेश और धनसहमेश पर शुभ ग्रहोंकी मित्रदृष्टि हो तथा बल- चान्भी हो तो पूर्वक धनलाभ होवे, जो इन्हें शुभ ग्रह शत्रुदृष्टि से देखें तो यत्नसे धनलाभ देते हैं ॥ १० ॥ अ·० - मित्रदृष्ट्यामुथशिले गयोः खतोधनम् तयोर्मूसरिफेवित्तनाशदुर्नयभीतयः ॥ ११ ॥ लग्नेश धनेशका मित्रदृष्टिसे मुथशिल योग हो तो अनायाससे धन मिले जो इनका शरिफ योग हो तो धननाश तथा दुर्नय (त्र ) भय होवे ॥ ११ ॥ अ० •- जन्मनी ज्योस्तियद्राशौसराशिर्वर्षल : ॥ भस्वामीक्षितयुतो नैरुज्यस्वाम्यवित्तदः ॥ १२ ॥ बृहस्पति जन्ममें जिस राशिका होवे वह राशि वर्षमें लग्न हो शुभग्रह तथा स्वस्वामियुक्त दृष्ट हो तो नीरोगता अपने देशका स्वामित्व और धन देता है ॥ १२ ॥ 7 अनुष्टु० -सुतौलग्नेरविर्वर्षे धनस्थोधनसौख्यदः ॥ शनौवित्तेकार्य्यनाशोलाभोल्पोऽथधनव्ययः ॥ १३ ॥ जन्ममें सूर्य्य लग्नका और वर्ष में धनस्थानका हो तो धनका है. ऐसाही शनि धनस्थानमें कार्य्यनाश थोडा लाभं बहुत धनहानि करता है ॥ १३ ॥ देता अनु तृसौख्यंगुरुयुतेभूतयःस्थुः भेक्षणात् ॥ : ऋरयोगेक्षणात्सर्वं विपरीतं फलं भवेत् ॥ १४ ॥ परंतु यह उक्त प्रकार शनि बृहस्पतियुक्त तथा शुभ ग्रहसे, दृष्ट हो तो ऐश्वर्ण्य और भाइयोंका देता है. क्रूर ग्रहोंके योग तथा दृष्टिसे उक्त शुभ फल संपूर्ण विपरीत होता है ॥ १४ ॥ अनु· · – वित्तेशोजन निगुरुर्वर्षे वर्षेशतांदधत् ॥ यद्भावगस्तमाश्रित्य लाभदोल आत् नः ॥ १५ ॥ ·