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पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३९

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भाषाटीकासमेता । (१३१ ) इसी प्रकार सम्पूर्ण भावोंके स्वामी जन्ममें बलवान् वर्षमेंभी बलवान् हो तो उस भावको पालते हैं जो भावेश जन्ममें तथा वर्षमें भी निर्बल हों तो बुद्धिमानोंने उस भावका नाश कहना ॥ ९ ॥ इति महीधरकृतायां नीलकंठीभाषाटी कायां वर्षतन्त्रे प्रथमभावफलाघ्यायः ॥ १ ॥ अथ धनभावविचारः । उपजा ० - वित्ताधिपोजन्मनिवित्तगोब्देजीवोयदालग्नपतीत्थशाली ॥ •तदाधनाप्तिः सकलेपिवर्षे क्रूरेसराफे धनधान्यहानिः ॥ १ ॥ जो जन्मका धन भावाधीश बृहस्पति वर्ष में धनभावगत हो और लग्नेश के साथ इत्थशाली हो तो सम्पूर्ण वर्षमें धनप्राप्ति होवे, जो उक्त बृहस्पति पापग्रह से ईसराफी हो तो धन तथा अन्नका नाश करे ॥ १ ॥ अनुष्टु० - जन्मन्यर्थावलोकीज्योऽब्देन्देशोबलवान्यदा ॥ तदा धनतिर्बहुलाविनायसेनजायते ॥ २ ॥ • जन्ममें धनस्थानको बृहस्पति देखे और वर्ष में वर्षेश होजावे बलवान् भी होवे तो विना परिश्रम बहुत धनप्राप्ति होवे ॥ २ ॥ अनुष्टु० - एवंयद्भाव पोजन्मन्य देतद्भावगोगुरुः || लळे शेनेत्यशाली चेत्तद्भावज खंभवेत् ॥ ३ ॥ ऐसेही जन्ममें जिस भावका स्वामी बृहस्पति है वर्षमें उसी स्थानमें हो और उपलक्षणसे वर्षेश हो जावे, लग्नेशसे इत्थशाली हो तो उस भावका सुख होता है जैसे जन्ममें तृतीयेश बृहस्पति वर्ष में तीसरा वा वर्षेश होकर लग्नेशसे . इत्यशाली हो तो भातृसुख होगा ऐसेही संपूर्ण भावों में विचार करना ॥३ अनुष्टु० - तथाजनुषियंपश्येद्भावमब्देदपो तदातद्भावजंसौख्यमुक्तंताजिकवेदिभिः ॥ ४ ॥ रुः || जैसे पूर्व कहा गया ऐसेही बृहस्पति वर्षमें वर्षेश हो और जन्ममें वह जिस भावको देखे उस भावजन्य सुख देता है ताजिकशास्त्र जाननेवालोंका यह मत है ॥ ४ ॥ अनुष्ट ० - जन्मषष्ठाधिप धपष्टोदेस्वल्पलाभदः ॥ पापार्दिते रौरभेऽथैवादंडः पतेद्ध्रुवम् ॥ ५ ॥