सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१३६

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

वाजिकनीलकण्ठी | अनु • - बुधशुक्रौमूसरिफौ गुरुर्विक्रमभावगः || तदाराज्ययशोहेममुक्ताविद्रुमलव्धयः ॥ ११ ॥

( १२८ ) बुध शुक्रका मूसरीफ योग हो और बृहस्पति तृतीयस्थानमें हो तो राज्य यश और सुवर्ण मोती मूंगे आदि रत्न मिलें ॥ ११ ॥ अनु • - भौमोमित्रगृहेऽव्देशःकंवूलीस्वगृहादिगैः ॥ गजाश्वहेमांबरभूलाभंदत्तेसुखाधिकम् ॥ १२ ॥ मंगल वर्षेश होकर मित्रके राशिमें हो और स्वगृहादि पदस्थित किसी ग्रहसे मुथशिली तथा चन्द्रमासे कंबूलीभी हो तो हाथी घोडे सुवर्ण वस्त्र भमि का लाभ और अधिक सुख देते हैं ॥ १२ ॥ अनु० - इत्थंजन्म निवपेंचयोगकर्तुर्बलाबलम् || विमृश्यकथयेगाजयोगंत गंगमेवच ॥ १३ ॥ इस प्रकार जन्म तथा वर्षमें योग करनेवाले ग्रहोंका बलावल विचारके राजयोग तथा राजयोगभंग कहना. जैसे योगकर्त्ता ग्रह उच्चादि पदस्थ वा पूर्णचली हो तो राज्यप्राप्ति निर्बल होनेमें राज्यादिहानि इत्यादि ॥ १३ ॥ उ० जा० - अव्हेंथिहेशादिखगाःखलैश्चेद्युतेक्षिताह्यस्तगनीचगावा ॥ सौम्यावलोनानृपयोगभंगंत दाभ वेद्वित्तसुखक्षयश्च ॥ १४ ॥ वर्ष में मुंथेशादि ग्रह जो पापयुक्त वा पापदृष्ट वा अस्तंगत नीचगत हों. तथा शुभग्रह बलरहित हों तो राजयोगभी हो तो भी भंग होगा और धन तथा सुखकाभी क्षय कहना ॥ १४ ॥ • शा०वि०–श्रीगर्गान्वयभूपणंगणितविञ्चितामणिस्तत्सुतोऽनंतोनंत- मतिर्व्यधात्खलमतध्वस्त्यैजनुः पद्धतिम् ॥ तत्सूनुःखलुनीलकंठविबुधों विद्वच्छिवानुज्ञयाऽवोचद्वर्पपंथहा फलमथारिष्टादिसद्योगयुक् ॥ १५॥ इस लोकका अर्थ पूर्वोक्तही है विशेष यह है कि वर्षेश मुंथाफल अरिष्ट - योग अरिष्टभंग राजयोग इस अध्याय में ग्रंथ कर्त्ताने कहेहैं ॥ १५ ॥ इति महीधरकृतायां नीलकंठीभापाटीकायां फलतंत्रे अरिष्टभंगराजयोग- राजयोगभंगकथनं नाम चतुर्थोऽध्यायः ॥ ४ ॥