पृष्ठम्:ताजिकनीलकण्ठी (महीधरकृतभाषाटीकासहिता).pdf/१०२

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ताजिकनीलकण्ठी । रिपुदृष्ट्यारिपोर्भीतिस्तस्करादेर्धनक्षयः ॥ मित्र यात्रियोगाद्धनंमानोयशः सुखम् ॥४६॥२१॥ अनु० - (९४) सहमसहमेशपर शत्रुदृष्टि हो तो शत्रुभय और चोर आदिसे धनक्षय होता है, मित्रदृष्टि हो तो मित्रके संबंध से धनप्राप्ति मानोदय यशलाभ और सुख होता है || ४६ ॥ २१ ॥ इन्द्रव० सत्स्वामिदृष्ट्युतमात्मजस्यलाभंसुखंयच्छतिपुत्रसद्म ॥ पापान्वितं सौख्यखगेत्थशालीप्राग् दुःखदंपुत्रसुखाय पश्चात् ४७७२२ पुत्रसहम स्वस्वामी शुभ ग्रहयुक्त वा द्दष्ट हो तो पुत्रसुख अर्थात् पुत्रो- त्पत्ति और उत्पन्न पुत्रोंका सुख देता है, ऐसाही शुभ मुथशिलसेभी कहना. जो पुत्रसहम पापयुक्त और शुभ ग्रहसे इत्यशाली होतो प्रथम पुत्रसंबंधी दुःख पश्चात् पुत्रसौख्य देताहै; योगफल प्रथम दृष्टिफल पीछे होता है ॥४७॥२२॥ इन्द्रव॰-पापान्वितंपापकृतेसराफनाशायपुत्रस्यगतौजसीशे ॥ सृतौसुतेशः सहमेश्वरोब्देपुत्रस्यलब्ध्यैशुभमित्रदृष्टः॥४८॥२३॥ जो पुत्रसहम पापयुक्त वा दृष्ट हो और पापग्रहसे इसराफी हो तथा पुत्र- भावेश निर्बल अस्तंगत हो तो पुत्रनाश करता है, जो जन्मलग्रसे पंचमेश वर्षीमें भी पंचमेश वा पुत्रसहमाधीश हो और शुभग्रह स्वस्वामि स्वमित्र युक्त दृष्ट हो तो पुत्रप्राप्ति करताहै ॥ ४८ ॥ २३ ॥ वसंतति ०-पित्र्यंसदीक्षितयुतंपति तदृष्टं तातस्ययच्छतिध नांबरमानसौख्यम् ॥ पत्यौगतौज सिमृतौखलमूसरीफेनाशः पितुश्चरगृहे परदेशयानात् ॥ ४९ ॥ २४ ॥ पितृसहम शुभग्रह वा स्वस्वामि युक्त वा दृष्ट और शुभग्रहसे इत्थशा- ली हो तो पितृसंबंधी धन वस्त्र मान सुख देता है, जो पितृसहमेश अस्ता- दिसे निर्बल हो वा लनसे अष्टम स्थान में हो पापग्रहसे मूसरीफी हो और