पृष्ठम्:चतुर्वेदी संस्कृत-हिन्दी शब्दकोष.djvu/३

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चतुर्वेदीकोष । २ अंशु अंशुमत्फर्ला, (स्त्री.) एक पौधे का नाम । कदलीवृक्ष । केले का पेड़ । अंशुमती (स्त्री.) सालपणवृक्ष | यमुनानदी का एक नाम | अंशुमाला, (स्त्री.) किरणों की माला । किरण- समूह । अंशुमाली, (पुं . ) सूर्य, चन्द्रमा । बारह की संख्या । अंशुहस्त, ( पुं. ) सूर्य । चन्द्रमा | सूर्य अपनी किरणों से पृथिवी से जल खींचते हैं, इस कारण उनकी १००० किरणें हाथ के समान समझी जाती हैं और वे " अंशु - हस्त " कहे जाते हैं । अंस, (धा. उभ. ) देखो श्रंस | श्रंस, (न.) कन्धा | हिस्सा | भाग | अंश । कूट, (पुं.) बृहत्स्कन्ध । बड़े कन्धेवाला । श्रं, (न.) कन्धेकी रक्षा करनेवाली वस्तु । कवच । फलक, ( मुं. ) विशाल स्कन्ध | पटरे के समान कन्धा | कन्धे का एक भाग । भारः, (अ. स. ) कन्धे का भार । कन्धे का रखा हुआ भार । अंसारिक, ( पुं. ) कन्धे पर भार रखने वाला । मजूर । कुली । अंसल, (त्रि.) बलवान् हड़काय । बली । अंहू, ( धा. आत्म. ) गमन | गति | जाना । चलना । अंहतिः - ती, (स्त्री.) पापनाशक | दुरितघ्न । पापों को दूर करनेवाली क्रिया | पाप- नाशक दान । हस्, (न. ) पाप | दुरित । प्रायश्चित्त के द्वारा नष्ट होने वाला पाप । इसी को अंघस् भी कहते हैं । अ, (धा. पर.) जाना । गमन । गति । चलना । श्रकम्, (न.) सुख का अभाव | दुःख । श्रकच, (त्रि.) (न.ब.) विना बालका। जिसके बाल न हों। खल्वाट । अक. कन्चः, ( पुं. ) केतु ग्रहका एक नाम । जो लोक को दुःख पहुँचाने के लिये बढ़े। केतु ग्रह का उदय लोकपीड़ा के लिये प्रसिद्ध है । प्रकडमचक्रम्, (न.) शुभाशुभ विचार का एक चक्र । तान्त्रिक दीक्षा का एक विधान- चक्र, जिससे मन्त्रों के शुभाशुभ का विचार किया जाता है । अकथित, (त्रि.) नहीं कहा हुआ । अनुक्त । अकथितकर्म, (न. ) व्याकरणकी एक संज्ञा का नाम | गौणकर्म । अपादान आदि कारकों को विवा करके कर्मसंज्ञक विभक्तियां जहां होती है वह कथित कर्म है। श्रकनिष्ठ, (न.) छोटा नहीं। बड़ा । ( पुं. ) वेदनिन्दक । वेदों की निन्दा में प्रसन्न होने वाला । बौद्ध । - अकनिष्ठप, ( पुं.) बौद्धों का पालन करनेवाला । बुद्ध भगवान् का एक नाम | बौद्धसम्प्रदाय का आचार्य । कम्पन, (त्रि.) नहीं कम्पने वाला। निर्भय । निडर । ( पुं.) एक राक्षस का नाम । यह रावण की सेना का सेनापति था। अकम्पित, (त्रि. ) ( न.त. ) अचशल | धीर । निर्भय । ((. पुं.) जैन और बौद्धसम्प्रदाय के एक महात्मा का नाम । जैन सम्प्रदाय के श्र न्तिम तीर्थकर का नाम । यह उनका असली नाम नहीं था। किन्तु उनके धीर होने के कारण लोगों ने उन्हें "श्रकम्पित की उपाधि दी थी । 99 अकर, (त्रि.) विना हाथ का । हाथरहित ।" अपने कर्तव्य से उदासीन | अपना कर्तव्य न करनेवाला । अकरणम्, (न. ) कार्य का भाव काम नहीं करना । कर्मरहित । इन्द्रियरहित । इन्द्रियशून्य । करणिः, ( स्त्री. ) कार्य शक्तिका नाश । इस शब्दका प्रयोग शाप देने के कार्थ में कियाजाता है ।