पृष्ठम्:काव्यसंग्रहः.pdf/३१३

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विदग्धमुखमण्डनं । ३०० अरोचम्मारं वादावेहि ॥ शब्दः कः स्यात्परुषवचनं कुण्डलौ को स्मरारेः कामंभोधेईरिरुदहरडीवधः पृच्छतीदं । इण्डी कुण्डी श्रणसिणधरे कीस अम्हारअत्यं ये पुछिल्ला सउणपरिहारुत्तरं कीसदेड ॥ ६३ ॥ नाही कुम्भार || संस्कृतलौकिकं इति चिचजातिः ॥ को निवसइ सच्छंद सुन्दरि गिरिगह कुञ्जमज्जमिम । सह प्रज्जुषेण योडुं सिहि ममणो केरिसो होइ ॥ ६४ ॥ सरहससवराहवग्गो । काहरइ मणं पइणो गुणगण जोवण सलाहणिगास्स | कअचडचडेति सद्दाहुआ सना केरिसाहोन्ति ॥ ६५ ॥ सरिसवहुआ ॥ इति शुद्धप्राकृतं ॥ पाणिगाहणणि श्रंसणुसोहइ केहि मण्डि | साहसु बहुवीर पइणो रिउवलं केहिं खण्डियं ॥ ६६ ॥ समरङ्गणेहिं ॥ रसिअहु केण उच्चाडणु किज्जइ जुइ भागसु केण उविज्जाइ | तिसिअलोअ खणु केण सुहिगाइ एहुपहु मम भुअणे गिग्धइ ॥ ६७ ॥ गीरसरारण || शुद्धापभ्रंशं ॥ सुलो मेहं पुच्छइ पुच्छइ मेहोवि तन्तहा सुचलं । केगह आसअलसुआ केण जणी विसइ पांचाल ॥ ६८ ॥ Digized by by Google