654 सू सव्यं जान्वाच्यानाच्य सशूकायामग्निहोत्र सहस्रवलशा विवयं सहाग्नेऽग्निना जायस्व साकं प्रस्थायीयेन यजेत सान्नाय्य पात्राणि प्रक्षा सामिधेनीप्रभृत्युपांशु सामिधेनी विवृद्धौ सामिधेनीरनूच्य (इ) सा मे सत्याशीरित्याशी शीर्देवान् सा या प्रागुदीची "" सावित्रेण परिगृह्य " 127 " सा विश्वायुरित्यनु • 89 साहत्वै समृद्धा पुरोनु (इ) 453 सिकतानामर्ध द्वैधम् सि·द्धमिष्टिस्सन्तिष्ठते " "> शम्या आपस्तम्ब श्रौतसूत्राणा " सीदति होता सुगार्हपत्यो विदहश्न सुयमे मे अद्य सुवरभि विख्येष मिति सूर्यस्त्वापुरस्ता सूर्योढमतिथिम् सोमस्याहं देव पृ सू. 121 66 | सोमायानुब्रूहि सोमेन त्वा तनच्मी 40 सोमेन यक्ष्यमाणो 514 | सोऽयं दर्शपूर्ण 314 | सोऽयमेवं विहित 81 616 412 स्थाल्यां पिण्डान् समव स्फ्यश्च कपालानि चेति 195 |स्योनं ते सदनम् 444 स्रुक्संमार्जनान्यद्भिः 405 | स्नग्भ्यां स्रुवाभ्यां वा सुव्यग्राण्युपापाय्य 22 स्रुच्यमन्वारभ्य स्रुच्यमाघारमभि सुवेण पार्वणौ होमौ स्त्रवेण प्रणीताभ्य स्त्रवेणाज्यसान्नाय्य 510 | स्त्रवेणाज्यस्थाल्या 346 562 स्वकृत इरिणे नावद्येत् 567 | स्वर्गकामो दर्शपू स्विष्टकृद्भक्षाश्च न 571 572 588 607 हविर्नर्वपणं वा 521 628 | हविश्शेषानुद्वास्यापि 626 | हविष्कृदेहीति ब्रा 214 | हस्तेनोपवपतीति हस्ते यः कामयेत् 201 र्हि कृत्य वाग्यतः स्त्रि 118 | हुते सायमझिहोते 182 | हुत्वाभिप्राणिति 596 | होतुरुपा 'शुनाम 414 | होतेडयाध्वर्युम् ह पृ. 271 90 478 340 75 74 106 187 168 268 178 398 227 229 140 223 197 597 295 334 382 251 124 127 475 597 79 204 214 242