648 सू प्रदक्षिणमावर्तयित्वा प्रधानमेवोपांशु प्रवसत्यने हवि प्रवसन् काले विहार प्रविद्ध रक्षः परा प्रस्तरपाणिस्संस्पृष्टान् प्रस्तरे याथाकामी प्रस्थितानामेकां प्राङदेत्य गोमतीम् प्राचो विष्णुक्रमान् प्राच्यां दिशि देवा प्राश्चमश्वमभ्यस्था प्राश्चमुहूढम् प्राञ्चौ वेद्यंसावुन्न प्राणाय त्वेति प्राची प्रातरग्निहोत्रं हु प्राशितवद्भ्यस्समानम् प्राशितायामिडे भागम् प्राश्नन्ति ब्राह्मणा प्रियेण नाना प्रिये प्रेयमगादित्युक्ता प्रेयमगादुर्वन्तरिक्षम् प्रोक्षणीरभिपूर्योदञ्चम् प्रोक्षणीवत्पिष्टान्यु प्रोक्ष यज्ञमिति हवि प्रोक्षादिकर्म प्रतिपद्यते फलीकरणहोमं पूर्व फल्गुनीपूर्णमास आपस्तम्ब श्रौतसूत्राणा ट 530 ब 228 बधान देव सवितरित्यु 113 | बर्हिरसि देवंगम 433 | बर्हिषा पूर्णमासे 127 | बर्हिषोऽहं देवय 181 | बलीय ऋचो वश (इ) 39 | बह्वाज्याभ्यां दर्शपू 27 बृहति गीयमाने 434 | बृहद्भा इति स्रुचमु 434 ब्र पिन्वस्व ददतो ब्रघ्न पिन्वस्वेत्यन्तर्वे 529 ब्रह्मण्वदाचवक्ष 178 | ब्रह्म देवा अवीवृधन्निति 419 131 157 ब्रह्मन्नपः प्रणेष्यामि ब्रह्मन् प्रवरायाश्रा 10 | ब्रह्मन्नुत्तर परिग्रा 497 सू ब्रह्मन् प्रस्थास्याम 570 ब्रह्म प्रतिष्ठा मनसः 245 |ब्रह्मप्रतिष्ठामनसो 497 ब्रह्मन् ब्रह्मासि ब्रह्म 188 33 ब्रह्मभागं प्राश्या ब्रह्मानयाधेये सा 42 ब्रह्मिष्ठो ब्रह्मा दर्श 162 | ब्राह्मणास्तर्पयित 138 | ब्राह्मौदनिकाद्भमापो 345 ब्राह्मौदनिकेन संव 556 भुवनमसीत्यग्रेण 275 | भूपते भुवनपते 476 | भूमिर्भूमिम पृ 153 42 369 411 457 171 534 205 407 408 211 256 342 208 159 281 231 349 349 537 341 432 513 502 199 379 349
पृष्ठम्:आपस्तम्बीयं श्रौतसूत्रम्.djvu/७८४
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