पृष्ठम्:अष्टाध्यायी (शिक्षापरिभाषादिसहिता).pdf/१०१

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चतुर्थोऽध्यायः । (१५) समर समल सुरस रोह तमाल कदल सप्तल ॥ इति सख्यादिः ॥ ४७ ॥ १० सङ्काश कपिल कश्मीर [समीर ] सूरसेन सरक सूर । सुपथिन्पन्ध च | यूप (यूथ) अंश अङ्ग नासा पलित अनुनाश अश्मन् कूट मलिन दश कुम्भ शीर्ष चिरन्त ( विरत ) . समल सीर पञ्जर मन्थ नल रोमन् लोमन् पुलिन सुपरि कटिप सकर्णक वृष्टि तीर्थ अगस्ति विकर नासिका ॥ इति सङ्काशादिः ॥ ४८ ॥ ११ वल चुल नल दल वट लकुल उरल पुख ( पुल ) मूल उलडुल ( उल डुल ) वन कुल || इति बलादिः ॥ ४९ ॥ १२ पक्ष तुक्ष तुष कुण्ड अण्ड कम्बलिका बलिक चित्र अस्ति । पथः पन्थच । कुम्भ सीरक सरक सकल सरस समल अतिश्वन् रोमन् लोमन् हस्तिन् मकर लोमक शीर्ष निवात पाक सहक ( सिंहक ) अकुश सुवर्णक हंसक हिंसक कुत्स बिल खिल यमल हस्त कला सकर्णक ॥ इति पक्षादिः ॥ ५० ॥ १३ कर्ण वसिष्ठ अर्क अर्कलूष द्रुपद आनडुह्य पाञ्चजन्य स्फिग ( स्फिज् ) कुम्भी कुन्ती जित्वन् जीवन्त कुलिश आण्डीवत् ( आण्डीवत ) जव जैत्र आकन ( आन- क ) ॥ इति कर्णादिः ॥ ५१ ॥ १४ सुतंगम मुनिचित विमचित महाचित्त महापुत्र स्वन श्वेत गडिक ( खडिक ) शुक विम वीजवापिन् ( बीज वापिन् ) अर्जुन श्वन् अजिर जीव खण्डित कर्ण वि ग्रह || इति सुतंगमादिः ॥ ५२ ॥ १५ मगदिन् मगदिन् मददिन कविल खण्डित गदित चूडार मडार मन्दार को- विदार ॥ इति प्रगद्यादिः ॥ ५३ ॥ १६ वराह पलाशा ( पलाश ) शेरीष ( शिरीष ) पिनद्ध निवद्ध वलाह स्थल वि दग्ध [ विजग्ध ] विभग्न [ निमग्न ] बाहु खदिर शर्करा || इति वराहादिः ||५४॥ १७ कुमुद गोमथ रथकार दशग्राम अश्वत्थ शाल्मलि [ शिरीष ] मुनिस्थल कु- ण्डल कूट मधुकर्ण घासकुन्द शुचिकर्ण ॥ इति कुमुदादिः ।। ५५ ।। १२४ वरणादिभ्यश्च ४ | २ | ८२ ॥ वरणा शृङ्गी शाल्मलि शुण्डी शयाण्डी पर्णी ताम्रपर्णी गोद आलिङ्ग्यायन जालपदी ( जानपदी ) जम्बू पुष्कर चम्पा पम्पा बल्गु उज्जयिनी गया मथुरा तक्षशिला उरसा गोमती वलभी ॥ इति वरणादिः || ५६|| १२५ मध्वादिभ्यश्च ४ | २ | ८६ || मधु विस स्थाणु वेणु कर्कन्धु शमी क- रीर हिम किशरा शर्याण मरुत् वार्दाली शर इष्टका आसुति शक्ति आसन्दी शकल शलाका आमिषी इक्षु रोमन् रुष्टि रुष्य तक्षशिला खड वट वेट || इति मध्वादिः ५७ १२५ उत्करादिभ्यश्छः ४ | २२९०॥ उत्कर संफल शफर पिप्पल पिप्पलीमूल अश्मन् सुवर्ण खलानिन तिक कितब अणक त्रैवण पिचुक अश्वत्थ काश क्षुद्र भस्ना