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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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अभिनवनलिनीविनोद |
७९ |
३२
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अभ्युन्नतेऽपि जलदे |
१०५ |
१०५
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अमरसिरोवरिठाणं |
१४८ |
४९
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अमी तिलास्तैलिक नून |
१४८ |
५७
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अभीभिः संसिक्ते स्तव |
२९ |
१७१
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अमुद्रोऽपि वरं कूपः |
१०४ |
१०
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अमुष्मिन्नुद्याने |
६० |
७२
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अमुं कालक्षेपं त्यज |
२३ |
१८९
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अम्भोजिनीवननिवास |
५४ |
२६
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अम्भोधेरेव जाताः |
७७ |
१७
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अयमवसरः सरस्ते |
१०३ |
८४
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अयि कुरङ्ग कुरङ्गम |
३८ |
७
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अयि कुरङ्ग तपोवन |
३९ |
१४
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अयि जलद यदि न |
२२ |
१७७
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अयि भामिनि गर्भादलं |
२६ |
१४
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अये कीरश्रेणीपरिवृढ |
६० |
६७
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अये ताल व्रीडां व्रज गुरु |
१२८ |
१६६
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अये नीलग्रीव क्व |
६९ |
१४०
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अये मुक्तारत्न प्रचल |
८२ |
५३
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अये वापी हंसा निजवसति |
१६३ |
१०
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अये वारां राशे कुलिश |
९८ |
४६
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अये विधातस्तव कीदृशी |
८ |
७२
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अये वेला हेलाकुलित |
२० |
१६६
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अयं नीलस्निग्धो य इह |
८४ |
७१
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अयं पद्मासनासीनः |
७१ |
१५४
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अयं बारामेको निलय इति |
१८ |
४३
|
अर्काः किं फलसंचयेन |
१६३ |
२३
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अर्काः केचन केचिदक्ष |
१२१ |
११२
|
अलियुवा विललास |
८२ |
५८
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अलिरयं नलिनीवन |
८३ |
६१
|
अल्पीयसैव पयसा |
२४ |
१९६
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अल्पीयःस्खलनेन यत्र |
४० |
१८
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विषयाः |
पृ. |
श्लो.
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असकृदसकृन्नष्टा |
३८ |
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असद्धत्तो नायं नच |
१४६ |
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अस्ति जलं जलराशौ |
९५ |
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अस्ति यद्यपि सर्वत्र |
५५ |
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अस्तं गतवति सवितरि |
१२५ |
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अस्तं गते दिवानाथे |
१२५ |
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अस्तं गते निजरिपावपि |
९९ |
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अस्तं गतोऽयमरविन्द |
७० |
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अस्मान्विचिच्रवपुषः |
७५ |
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अस्मिन्नम्भोदवृन्दध्वनि |
२९ |
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अस्याननस्य भवतः |
४३ |
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अस्यां सखे बधिरलेक |
६३ |
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अहलो पत्तावरिओ |
१३० |
१
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अहह चण्डसमीरण |
१०७ |
१
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अहिरहिरिति संभ्रमपद |
४६ |
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अहो नक्षत्रराजस्य |
८ |
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आः कष्टं वनवासिसाम्य |
४० |
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आः कष्टं सुविवेकशून्य |
९१ |
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आक्रर्ण्य गर्जितरवं |
१५३ |
१०
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आकारः कमनीयता |
५७ |
४
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आकारो न मनोहरः |
१२
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आकुट्टी उण नारं |
१०० |
६
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आकृष्यन्ते करिणः |
३१ |
५
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आगत्य संप्रति वियोग |
५ |
४
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आघ्रातं परिलीढमुग्र |
८९ |
३
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आचक्ष्महे बत किमद्य |
८७ |
१९
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आजन्मस्थितयो महीरुह |
१०२ |
७७
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आतपे धृतिमता सह वध्वा |
७१ |
१५५
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आदाय वारि परितः |
९६ |
२९
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आदौ यादोनिवासोक्तिः |
९३ |
९
|
आधोरणाङ्कुशभयात् |
३१ |
५८
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आपुष्यप्रसरान्मनोहरतया |
१२८ |
१६२
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