पृष्ठम्:अथर्ववेदभाष्यम् भागः २.pdf/२

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अथर्ववेदमाप्य - सम्मतियां | श्रीमान् पण्डित तुलसीराम स्वामी प्रधान आर्यप्रनिनिधिसभा संयुक्त प्रान्त, सामवेद भाष्यकार, सम्पादक वेदप्रकाश, मेण्ड - मार्च २६१३ । ...ऋग्यजुर्वेद का भाग्य श्री स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने संस्कृत और भाषा में किया है, सामवेद का श्री पं० तुलसीराम स्वामी ने किया है, अथर्ववेद के भाग्य की बड़ी थी। पं० क्षेमकरणदास जी प्रयाग निवाग्मी में इस प्रभाव को दूर करना प्रारम्भ कर दिया है। भाग्य काम है। यदि इसी प्रकार समस्त भाप्य बन गया जो हमारी समझ में कठिन है. तो चारों वेदों के भाषा भाग्य मिलने लगेंगे, आाय्यों का उपकार होगा | 'श्रीगुत महाशय नारायणप्रसाद जी - मुख्याधिष्ठाता गुरुकुल पुन्हाबन मथुरा–उपप्रधान श्रार्थप्रतिनिधि सभा संयुक्त प्रान्त | प्रायंभिन्न आगरा, २४ जनवरी १६१३ । ... श्री पं० क्षेमकरणदास त्रिवेदी प्रयाग निवामी, ऋकलाम तथा अमर्ववेद सम्बन्धी परीक्षोत्तीर्ण श्रथववेद की भाषा भाष्य करते हैं... मैंने सम्पूर्ण [प्रथम] कांड का पाठ किया | त्रिवेदी जी का भाष्य ऋषि दयानन्द की शैली के अनुसार भावपूर्ण, संक्षिप्त और संपतया प्रकट करने वाला है कि मन्त्र के किस शब्द के स्थान में भाषा का कौनसा शब्द आया, फिर नोटों में व्याकरण तथा निरुक्त के प्रमाण, प्रारम्भ में एक उपयोगी भूमिका, देदेने से भाष्य की उपयोगिता और भी यह गई है, निदान भाष्य अत्युत्तम, आर्य समाज का पक्षपोषक और इस योग्य है कि प्रत्येक आर्यसमाज उसकी एफर पीथी (कापी) अपने पुस्तकालय में रपयें | त्रिवेदी जी ने इस भाप्य का शारम्भ करके एक बड़ी कमी के पूर्ण करने का उद्योग किया है | ईश्वर उन को बल तथा वेद प्रेमी यावश्यक सहायता प्रदान करें निर्विलता के साथ यह शुभ कार्य पूरा हो.. छपाई और कागज़ भी अच्छा है।... श्रीयुत महात्मा मंशीराम जी जिज्ञासु मुख्याधिष्ठाता. गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार-पत्र संख्या है? तिथि २७-१०-६६६६ । अथर्ववेद भाय शाप का दिया व किया हुआ अवकाशानुसार तीसरे हिस्से के लगभग देख चुका हूं, आपका परिश्रम सराहनीय है । तथा-पत्र संख्या ११४ निथि २२-१२-१९६३ । अवलोकन करने से भाष्य उत्तम प्रतीत हुआ | (टिपेज पृष्ठ ३ देखिये )