पुटमेतत् सुपुष्टितम्
xiii
विषयः
पृष्ठम्
२९. | अन्तरायकथनम् | ८१ |
३०. | तदर्थम् अभ्यसनीयविषयकथनम् | ८३ |
३१. | चित्तप्रसादनोपायाः | ९१ |
३२. | प्रसन्नचित्तस्थैर्योपायाः | ९२ |
३३. | स्थिरचित्तताऽवान्तरफलम् | ९७ |
३४. | स्थिरचित्तस्य समापत्तिस्वरूपकथनम् | " |
३५. | सवितर्कसमापत्तिलक्षणम् | १०२ |
३६. | निर्वितर्कसमापत्तिलक्षणम् | १०३,१०४ |
३७. | सविचारनिर्विचारसमापत्तिलक्षणम् | ११० |
३८. | सूक्ष्मविषयत्वावधिकथनम् | १११ |
३९. | उक्त्तसमापत्तीनां सबीजत्वकथनम् | ११३ |
४०. | निर्विचारोत्कर्षफलम् | " |
४१. | ऋतम्भरप्रज्ञाकथनम् | ११४ |
४२. | ऋतम्भराया विशेषविषयत्वम् | ११५ |
४३. | निर्विचारसमापत्तिजन्यसंस्काराणामितरसंस्कारप्रतिबन्धकत्वम् | ११६ |
४४. | निर्बीजसमाधिदशाकालः | ११७ |
॥ द्वितीयः साधनपादः ॥
१. | क्रियायोगस्वरूपकथनम् | १२१ |
२. | क्रियायोगफलम् | १२४ |
३. | क्लेशोद्देशः | १२५ |
४. | क्लेशानामविद्यामूलकत्वम् | १२७ |
५. | अविद्यालक्षणम् | १३२ |
६. | अस्मितालक्षणम् | १३७ |
७. | रागलक्षणम् | १३९ |
८. | द्वेषलक्षणम् | १४० |
९. | अभिनिवेशलक्षणम् | " |
१०. | क्लेशानां पश्चिमावस्थाकथनम् | १४२ |
११. | तद्वृत्तीनां ध्यानहेयत्वम् | " |
१२. | कर्माशयस्य क्लेशहेतुत्वम् | १४३ |
१३. | कर्माशयविपाकनिरूपणम् | १४६ |
१४. | विपाकफलकथनम् | १५८ |
१५. | सुखस्यापि दुःखात्मकतया हेयत्वम् | १५९ |