पुटमेतत् सुपुष्टितम्
॥ सभाष्यविवरणश्रीपातञ्जलयोगसूत्रविषयानुक्रमणिका ॥
॥ प्रथमः समाधिपादः ॥
विषयः | पृष्ठम् | |
१. | योगशास्त्रारम्भः | १ |
२. | योगलक्षणम् | ९ |
३. | निरोधकाले चित्तः स्वरूपमात्रावस्थानम् | १३ |
४. | व्युत्थानकाले चित्तो वृत्तिसारूप्यम् | १४ |
५. | वृत्तीनां पञ्चसङ्ख्यत्वम् | १७ |
६. | वृत्त्युद्देशः | १८ |
७. | प्रमाणविभागलक्षणे | " |
८. | विपर्ययलक्षणम् | ३३ |
९. | विकल्पलक्षणम् | ३५ |
१०. | निद्रालक्षणम् | ३८ |
११. | स्मृतिलक्षणम् | ३९ |
१२. | निरोधोपायः | ४२ |
१३. | अभ्यासलक्षणम् | " |
१४. | अभ्यासस्य दृढभूमित्वे उपायकथनम् | ४३ |
१५. | वैराग्यलक्षणम् | " |
१६. | परवैराग्यलक्षणम् | ४४ |
१७. | संप्रज्ञातसमाधिलक्षणविभागौ | ४७ |
१८. | असंप्रज्ञातसमाधिलक्षणम् | ४८ |
१९. | निरोधसमाध्यवान्तरभेदभवप्रत्ययाधिकारिकथनम् | ५० |
२०. | तदवान्तरभेदोपायप्रत्ययाधिकारिकथनम् | ५१ |
२१. | उपायतारतम्यप्रयुक्तफलतारतम्यम् | ५२ |
२२. | ईश्वराराधनस्यापि निरोधसमाध्युपायत्वम् | " |
२३. | ईश्वरलक्षणम् | ५३ |
२४. | ईश्वरस्य सर्वज्ञत्वसाधनम् | ५७ |
२५. | ईश्वरस्य सर्वश्रेष्ठत्वम् | ७४ |
२६. | ईश्वरवाचकस्वरूपम् | ७६ |
२७. | ईश्वरप्रणिधानस्वरूपम् | ७९ |
२८. | ईश्वरप्रणिधानफलम् | ८० |
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