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गोलाध्यायः
ग्रहों की कक्षाएं है | कलात्मक् गति से रानैश्च्ररादिग्रह् शीघ्रगतिक् है भ्रर्षात शनि से ग्रुह् शीघ्रगतिक् है,गुरु से मङल्, मङल् से रवि,रवि से शुक्र,शुक्र से बुध,बुध् से चन्द्र सीघ्र्- गामी है | इससे चन्द्र सब् ग्रहों से भषिक् शीघ्रगतिक् सिध्द् होता है |यदि चन्द्र् से उर्ध्व क्रम से ग्रह कक्षा स्थिति को देखा जाय तो सिध्दन्तशिरोमरिग मे ' भुमेः पिण्डः शशाखज् कवि- रविकुजेज्यकिं नक्षात्रकक्षा' इत्यदि भास्क्रराचर्योक्त ग्रह् कक्षा स्थिति ही देखने में भाती है|
उप्पति | यहां सन्स्क्रुतोपपत्ति में लिखित(क) क्षेत्र को देखिये | ग्रह् कक्षाओ कां निवेशक्रम् ऐसा( भाष्य में लिखित के अनुसार) क्यों है इसका ज्ञान के बिम्बीय करगों के ज्ञान से होता है| जिस ग्रह केबिम्बीय करगों से जिस ग्रह का बिम्बीय करगं होता है उसकी कक्षा बडी होती है भर्यात् जिसका बिम्बीय करगं भल्प है उसकी कक्षा से वह कक्षा( जिसका बिम्बीय करगों भषिक है) ऊपर होती है | भतः वेध से बिम्बीय करगार्नयन करते है|
भू=भूकेन्द्र,प्रु=भ्रुप्रुष्ट्स्थानं,वि=ग्रह,विस्मकेन्द्र,ह=हुष्टिस्थान,प्रुद्य्=नरोच्च्ति, भूवि=बिम्बिया करगं, भूप्र=भूव्यासाधं ,भूव्यासाधं भ्रोर् नरोच्चिति विदित है विप्रुद्य ,विप्रुद्य दोनोंका कोरगा तुरिय यन्त्र से मापन करके जान लिये तब
२=०-(<विप्रुद्य्+विद्य्प्रु)=<प्रुविह यह कोराग भी विदित हो गया,भ्रव विप्रुद्य
प्रुद्य्*ज्या<प्रुद्यवि में त्रिभुज में भनुपात करते है| ज्य<प्रुविह = प्रुवि कोरगाअज्या भोर भधार्राज्या बराबर होति है भ्रतः ज्य< विप्रुद्य =ज्या( १=०-<विप्रुद्य) से <विप्रुभू कोरग का भी हो गया तब विप्रुभू त्रिभुज में विप्रु, इन दोनों भुजों के तथा उस षन्तर्गत करोग के ज्ञान से भुसमुखास्त्रोद्भ्व कोठिशिज्ञ्जनी इत्यदी प्रकार से भुवि का ज्ञान हो जायागा यही बिम्बीय करगं है इति|