से, जो ब्रह्म देश वस्तु काल कृत भेदसे रहित है अथवा भेद् प्रपंच विनाश से रहित है (यत् जाग्रत्स्वपन प्रसुप्तिषु) ताटस्थ लक्षण और स्वरूप लक्षण से बताया जो तत्पदार्थ ब्रह्म है सो ब्रह्म ही (तत्सृष्टा) इत्यादि श्रुति प्रमाण से प्रत्यगात्म रूप हुआ है इस तात्पर्य को मन में लेकर अन्वय व्यतिरेक युक्ति से त्वंपदार्थ के संशोधन के बोधन का प्रकार सूचन किया जाता है, (यत्) वह प्रत्यगात्म ब्रह्म जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति रूप परस्पर व्यभिचारी अव स्थाओं में (विभाति) अनुगत रूप से भान होता है अर्थात् आपस में जाग्रत् आदिक अवस्थाओं के व्यभिचारी होने पर भी सो आत्मा व्यभिचार से रहित है, (एकम्) जाग्रत् आदि अव स्थाओं के भेद होने पर भी जो प्रत्यगात्म ब्रह्म भेद वाला नहीं है, (विशोकम्) शोक से रहित है अर्थात् आनन्दस्वरूप है, (परम्) तथा जाग्रत् आदिक तीनों अवस्थाओं के सम्बन्ध से रहित है।३।।
अब आचार्य वेदांत के अधिकारी को कहते हुए कर्तव्य भूत ग्रंथ रचने की प्रतिज्ञा करते हैं।
शिखरिणी छन्द । ।
अधीतेज्या दानव्रत जप समाधान नियमेर्विशुद्ध
स्वान्तानां जगदिदमसारं विमृशताम् । अराग
द्वेषाणामभय चरितानां हितमिदं मुमुत्तृणां
हृदयं किमपि निगदामः सुमधुरम् ॥४॥
वेदाध्यन, यज्ञ, दान, तप, उपासना, इन्द्रियानिग्रह आदि से शुद्ध श्रन्तःकरण वाले, यह जगत असार है ऐसे