मानम्) अनुमान भी (निस्तर्कम्) व्यभिचार शंका निवर्तक तर्क से शून्य ही हो जावेगा ।
शंका -प्रयत्न वाले कुलालश्रादिकों को कार्य की जनकता देखी है, इसलिये कुलाल के दृष्टान्त से पृथ्वी श्रादिकों के अनु कूल प्रयत्न की श्राश्रयता ईश्वर को सिद्ध हो सकती है ।
समाधान - यह नहीं बन सकता, ( यतः ) क्योंकि
(कृतिरपिहि) प्रयत्न भी निश्चय से (चेष्टया ) शरीर की
क्रिया द्वारा ही (अर्थम् ) कार्य को ( विधत्ते ) करता है । ऐसा
होने पर अर्थात् यत्न का शरीर-क्रिया कारण होने पर पृथिवी
श्रादि सर्व कार्य के प्रति वह कारण नहीं बन सकेगा और इस
प्रकार से भी ईश्वर की सिद्ध नहीं होगी ॥२०॥
श्रब परमाणु कारणबाद का खंडन करते हैं।
कस्मादण्वोः क्रियास्यात्कथ मथ मिलित
निष्प्रतीक कथं वा काय ताभ्यां तत्तीय
च न महत्पारिमाण्डल्यतः स्यात् ।
तेभ्यः कस्मान्महान् स्यात्किमिति पुनरसावेव
नित्यो न ते स्यान्नित्यश्चारः कथं वा निरवयव
इति ब्रह्यसत्काय वादिन् ॥२१॥
हे सत्कार्य वादी, किस कारण से दो परमाणुओं में
क्रिया होती है और निरवयव दोनों श्रणु किस प्रकार
मिलते हैं ? द्वयणुक से सर्वथा भिन्न व्यणुक का कार्य
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