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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः (भागः ४).djvu/६३

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११५४ ब्रास्फटसिद्धान्ते अब कुट्टक को कहते हैं। हेि. भा.-किसी राशि को एक हर से भाग देने से जो शेष रहता हैं वही उसी राशि को दूसरे हर से भाग देने से रहता है। तब यह राशि क्या है। अधिक शेष सम्बन्धी हर में अल्पशेष सम्बन्धी हर से भाग देने से जो शेष रहता है उसको परस्पर भाग देने से लब्ध को पृथक् अधोऽधः स्थापन करना। अधिकशेष सम्बन्धी हर में अल्पशेष सम्बन्धी हर से भाग देने से जो शेष रहता है उससे अल्पशेष सम्बन्धी हार को भाग देने से जो शेष रहता है उससे प्रथम शेष को भाग देना । फिर यहां जो शेष रहे उससे द्वितीय शेष को भाग देना। इस तरह बराबर कर्म करना चाहिये । फलों को अघोऽधः स्थापन करना। इस तरह अभीष्ट शेष को किसी इष्ट से गुणा कर दोनों शेषों को जोड़ना जिससे वह भाजक (हर) उपान्तिम शेष से शुद्ध हो । इस तरह वह गुणक पूर्वस्थापित फलों के अधः स्थापन करना । तब अन्त से कर्म करना चाहिये । कैसे सो कहते हैं। ऊध्र्वाङ्क को उपान्त्य से गुणाकर अन्त्य को जोड़ देना चाहिये, उस अन्त्य को त्याग देना चाहिये । इस तरह अन्त्य में जो ऊध्र्व राशि होता है उसको अल्प शेष सम्बन्धी हर से भाग देने से जो शेष रहे उसको अधिक शेष सम्बन्धी हर से गुणाकर अधिक शेष को जोड़ने से राशि होता है। यहां म. म. सुधाकर द्विवेदी का उदाहरण है। हेि. भा.- किसी राशि को चौंतीस से भाग देने से दो शेष रहता है और तेरह से भाग देने से दश शेष रहता है उस राशि को कहो । यहाँ ३४ हर का शेष=२ है। १३ हर का शेष = १० हैं । इसलिये अधिक शेष सम्बन्धी हर=१३ अल्प शेष सम्बन्धी हरः= ३४ है। इससे अधिक शेष सम्बन्धी हर को भाग भाग देने से शेष= १३ तब परस्पर भाग देने से वल्ली | ३६ ‘उपान्तिमेन स्वोध्र्वे हतेऽत्येन युतं तदन्त्यं त्यजेत्' इत्यादि से अग्रान्त=३६ इसको १ १४ | अल्प शेष सम्बन्धी ३४ इस हर से भाग देने से शेष =२, इसको अधिक शेष २ | ६ सम्वन्धी हर से गुणाकर अधिक शेष को जोड़ने से राशि =३६, इसकी यदि दोनों हरों के घात के बराबर हर ३४x १३=४४२ से भाग देने से शेष राशि के बराबर होता है। यदि वल्ली सम रहे तब ही इस तरह कर्म करना । यदि वल्ली विषम रहे तब गुणक के नीचे जो लब्ध स्थापित है उसको ऋण कल्पना कर बीज़ क्रिया से योग अन्तर आदि कर्म करना चाहिये । इष्ट शेष को किस से गुणाकर दोनों शेषों के अन्तर को जोड़कर हर से भाग देने से शुद्ध होता है यहां यदि शेष रूप १ के बराबर हो तब शेष को शेष द्वय के अन्तर तुल्य गुणक से गुणा करने से शेषद्वय का अन्तर ही रहता है इसलिये उसमें शेषान्तर को घटाकर हर से भाग देने से लब्ध निःशेष शून्य होता है अतः लीलावती में ‘मिथो भजेत्तौ दृढ़भाज्य हारौ' इत्यादि भास्कराचार्य ने कहा है।