ऐसा ज्ञात होता है। भास्कराचार्य ने इस श्रीपत्युक्त संस्कार को बार-बार देख कर विचार करने से उपलब्ध ज्ञान के विस्तार पूर्वक प्रतिपादन के लिए सिद्धान्त शिरोमणि ग्रन्थ की रचना की । इस रचना के एक वर्ष पश्चात् ५९ श्लोकों का ‘बीजोपनय ' नामक ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि की भांति ‘वासना भाष्य' सहित बनाया । जैसा कि निम्नोक्ति मे सिद्ध है ( १४ ) मयाथ बीजोपनये यदन्ते सूर्योक्तमाद्य परमं रहस्यम् । प्रकाशये गोप्यमपीह देवं प्रणम्य बीजं जगतां हितार्थम् ॥१॥ यद्यपि पूर्वमपीदं संक्षेपादुक्तमागमोक्तदिशा । नैतावतैव कश्चित् दृङ्करणैक्याय कल्पते गणक ॥२॥ इकूरणैक्यविहीनाः खेटाः स्थूला न कर्मणामहः । अत इह तदर्हतायै तात्कालिकबीजविस्तरं वक्ष्ये ॥३॥ पाता रवेस्तामसकीलकाख्यास्तेषां समाकर्षणतः शशाङ्कः । तत्तुङ्गशक्तिश्च निजस्वभावं विहाय नित्यं विषमत्वमेति ॥४॥ चद्राच्च तद्योगवियोगतश्च साध्यं हि भाद्य विषमं यतः स्यात् । तस्माद्विधोरत्र विशुद्धिशुद्धघ विस्तार्यते बीजफलक्रियेयम् ॥५॥ एकेन पुसा निखिलग्रहाणामन्तं प्रबोधो न हि शक्यतेऽतः । व्यासात्समासाच्च यथोपलब्धं प्रोक्त भयेत्यादरणीय मेतत् ॥६॥ भग्रहयोगाध्याय 1 । भग्रहृयोगाध्याय में कृत्वापि दृष्टिकर्म श्रीषेणार्यभटविष्णुचन्द्रोक्तम् । प्रतिदिनमुदयेऽस्ते वा न भवति दृग्गणितयोरैक्यम् ॥१॥ भमुनिमृगव्याधानां यतस्ततो दृष्टिकर्म वक्ष्यामि । दृग्गणितसमं देयं शिष्याय विरोषितायेदम् ॥२॥ ब्राह्मस्फुट सिद्धान्त के उत्तरार्ध में-परिकर्म विंशति (सङ्कलित, व्यवकलित, गुग्न, भागहार, वर्ग, वर्गभूल, पञ्चजाति, त्रैराशिक, व्यस्तत्रराशिक, सप्तराशिक, नवराशिक, एकादशराशिक, भाण्डप्रतिभाण्ड (अदला बदली)-आदि ब्राह्मस्फुटसिद्धांत का विषयों का उल्लेख है । प्रत्येक स्थान में चतुर्वेदचार्योक्त उदाहरण हैं। सिद्धान्त शेखर में भी परिकर्म विशति (भिन्नाङ्कों के छः गुणन, भजन, वर्ग, वर्गमूल, धन तथा घनमूल; भिन्नाङ्कों के योग, अन्तर, गुणन, भजन, वर्ग, वर्गमूल छ:; भाग, प्रभाग, भागानुबंध, भागापवाह जातिचतुष्टय; विलोमकर्म, त्रराशिक, व्यस्तत्रराशिक और उत्तर
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