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अ. १ आ. १ सू. ८ ।
अ० २ आ० १ सू० ६
- व्या-जऊ में गन्ध नहीं । जब कभी गन्ध की भीप्ति होती
है, तो वह पार्थिव अंशा के मेल से होती है स्वतः नहीं। रूप जल में शुछ ही है, और रस मधुर ही है। द्रवत्व और स्नेए ये दो गुण और हैं। द्रवत्व वह गुण है, जिस से जळ वहते हैं, और स्नेह वह है, जिस से धूली आदि को मिलाकर संग्रह कर सैगति-क्रम प्राप्त तैज का लक्षण कहते हैं
तेजो रूपस्पर्शवत् ॥३॥
(ज रूप और स्पर्शवाला है )
व्या०-तेजका रूप भास्वर शुझ है औरं स्पर्श उष्ण है। भास्वर= दूसरों का प्रकाशाक ।
वायु का विलक्षण अनुभवसिद्ध है ।
त आकाशे न विद्यन्ते ॥४॥
व्या०-आकाश में न रूप है, न रस है, न गन्धहै न स्पर्श है। सं-प रस गंग्ध स्पर्श के आधार दिखला कर जलों में कहे द्रवत्व की समानता अन्यत्र दिखलाते हैं।
सर्पिर्जतुमधूच्छिष्टानामनि संयोगाद् द्रवत्व मद्भिः सामान्यम् ॥६॥