वैशेषिक दर्शन
रूपों का प (सांझा कार्य है) ।
उपा०-वस्त्र का रूप मारे तन्तुरूपों का एक सांझा कार्य होता है। इसी प्रकार रस गन्ध आदि ।
गुरुत्व प्रयत संयोगाना मुत्क्षेपणम् ॥२९॥
गुरुत्व, प्रयत्र और संयोग का उत्क्षेपण (साँझा कार्य है) ।
व्या०-ऊपर फेंकने में ये कारण हुआ करते हैं-फंक्री जाने वाली वस्तु का गुरुत्व, फेंकने वाळे का प्रयपत्र, और हाथ का सैयोग । सो उत्क्षेपण इन तीनों का सांझा कार्य है । इसी प्रकार अवक्षेपणादि ।
संयोग विभागाश्च कर्मणाम् ॥३०॥
संयोग और विभाग कमों के (सांझे कार्य हैं) ।
व्या०-एक ही कर्म पूर्व देश से विभाग और उत्तरं देशा से संयोग उत्पन्न करता है ।
कारण सामान्ये द्रव्य कर्मणां कर्मकारण मुक्तम्॥३१॥
फारण सामान्य में द्रष्य और कर्मो का कर्म भकारण कहा है ।
ध्या०-पूर्व कारण सामान्यमकरण-(सू० १८) में कर्म को द्रष्प और कर्म का अकारण कह चुके हैं (देखो सू० २१, २४) इसलिए कर्म केवळ गुणों का ही कारण होता है ॥
प्रथम अध्याय, द्वितीय आाद्विक ।
स•-पहळे आन्द्रिफमें कार्यफारणमाय से द्रव्यगुणकर्म का साधम्ये धेघग्यै दिखलाया है, जय उस कार्यकारणभाव के नियम दिखाते -
कारण के अभाव से फार्क का भभाव (दोता है) ।