- अ० १. श्रा० १ सू० २८
व्या-शुण तो सजाति के भारम्मक होते हैं, इसलिए तन्तु के खूप का कार्य वस्त्र का रूप होता है, पर कर्म सजातीया ' रम्भक होता नहीं (देखो सू० ११) इस लिए धन्तु के कर्म से
. सै०-द्रम्यधत्तू कई गुण भी अनेक द्रव्यों का कार्य हैं। -
द्धित्वप्रभृतयः संख्याः पृथक्व संयोग विभा गाश्च ॥२५॥
ज्या०-ो आदि संख्या पृथक्क (अळगपन) संयोग, और विभाग भी (अनेक द्रव्यों का साँझा कार्य हैं) ।
ध्या-द्वित्व संख्या अकळे में नहीं होती, न ही अकेले में पृथक् संयोग और विभाग रहते हैं ।
सं०-पर फर्म ऐसा कोई नहीं दीता, यह घतलाते हैं
असमवायात् सामान्यकायै कर्म न विद्यते ॥२६॥
। असमवाय से सांझा कार्य कर्म नहीं होता है।
व्या०-पर फर्म एक अनेकों में समवेत नहीं होसा, हर एक में अपना अलग २ कर्म होता है (देखो पू० ० १७) इसलिए कर्म अनेक द्रष्यों का साझा कार्य नहीं होता है।
संयोगानां द्रव्यम् |२७॥
सैयोगों का द्रव्य (सांझा लार्य होता है) ।
व्या०-वहुत से तन्तुसैोगों का स्वरूप एक कार्य होता है । । रूपाणां रूपय् ॥२८॥ द्रव्य