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सर्गः
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श्लोकः
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कतिपयानि दिनानेि |
VII |
33
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कतिपयेषु गतेषु |
VII |
36
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कथं तदैकच्यं प्रति |
VII |
10
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कनकवत्रेधरं |
III |
62
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कन्यां प्रदातुमन्सा |
I |
23
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कन्यापितुर्वरपितुश्च |
I |
25
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कन्याप्रदानमिदम् |
VI |
32
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कन्यार्थिनौ सुतनु |
VI |
42
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कन्यावरौ प्रकृति |
VI |
54
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कमलजच |
III |
64
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कर्माणि जन्मान्तर |
X |
63
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कमाण तस्य जन्कः |
IV |
32
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कलाः कियत्यो वद |
XII |
62
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कलिन्दपुत्र्यास्स |
V |
2
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कल्पान्तरुद्रमिव |
IX |
53
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कवेरकन्याजल |
VIII |
25
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कवेरकन्यासलेि |
VIII |
35
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काश्रत्तु तस्याः |
I |
27
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कश्चित्परीहास |
X |
57
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कश्चित्पुरामृत |
VII |
106
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कश्चित्समानयदथ |
XI |
35
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कश्चित्सिसेच |
X |
82
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कश्चिद्दिजातिरधि |
VI |
64
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कश्चित्द्ब्वन्घ |
X |
53
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कश्चिद्युवा मकर |
X |
118
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कश्चिद्युवा युवति |
X |
106
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कश्चिन्मृतिं व्रजति |
IV |
36
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कष्टो दुष्टो भूसुरो |
VII |
103
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काचित्कमिवा |
X |
81
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काचित्कृतागस
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काचिलतागृह
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कादम्बिनीयवनिका
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कान्तारपर्वत
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कालट्याख्ये
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कालो न दूष्यः
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कालोप्तबीजादिह
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काशेः क्षितिधेवल
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किञ्चात्र तीर्थमिति
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किञ्चित्समाधाय
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किमपि नेच्छति
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किमपि वाञ्छतेि
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किमयमग्रिथो
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किमु विधेयमतः
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किरीटमस्योपरि
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केलोपमन्यों
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कीर्ति खकां भुविं
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कुटुम्बभारो मयि
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कुमारक्षागत
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कुर्वन्ति लोभवशगा
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कुर्वे तदत्र भवने
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कुल्योपकूलागत
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कुशलमेव समस्ति
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कूपे खानं माघमासे
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कृचछ्रेण लब्धशिशु
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कृतवती
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कृतापराघां
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कृतोपकारं न हि
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