सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:Ashwalayana gruhya sutra bhashyam.pdf/३२१

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

२८४ Sutra सर्वैर्मन्त्रैश्चतुर्थम् ' सविता ते हस्तमग्रभीत् स वृतो जपेत्---' महन्मे सव्यं जान्वाच्य सव्यं शूद्राय आश्वलायनगृह्यसूत्रभाष्यम् 7 Chap. Section and No 1. 17. 14 Page 94 1.20. 3 103 1.23. 14 122 4. 3. 24 234 1. 24.12 130 सव्य उपभृतम् 4.3.3 231 सव्ये बाहौ बद्ध्वा 4.2.9 227 स समिमाधाया 1.21.3 106 सायं प्रातः समिधमादध्यात् 1. 22.5 111 सायं प्रातभिक्षेत 1.22.4 110 सार्वकालमेके विवाहम् 1. 4. 2 25 सावित्री मन्वाह 3.2.4 188 सावित्र्या द्वितीयम् 1. 22. 12 113 सुत्रामाणं पृथिवीं सुमन्तु जैमिनि ० सुरा चाचाममिति सुसंचितं संचिन्त्य सृष्टं दत्तमृध्नुकम् सोदके प्रशस्तम् सोमप्रवाकं परिपृच्छेत् ' सोमो नो राजावतु ' र 2.6.10 169 . 3. 4. 5 193 2.5.6 162 4.5.6 241 4. 7. 24 254 2. 8. 7 176 1.23.25 125 1. 14.6 80 सौविष्टकृतं चतुर्थम् 1.22.15 114 2.4. 16 157 स्तुहि श्रुतं गर्तसद 3.9.9 217 स्त्रीभ्यश्च 2. 5. 5 161 ई स्थिरौ गावौ भवतां ' 2.6.9 169 स्नातकायोपस्थिताय 1.24.2 127 [स्मृतं च मे अस्मृतं च ] 3. 8.22 212