२७६ आश्वलायनगृह्यसूत्रभाष्यम् Chap. Sutra Page Section and No. प्रत्यक्तरं वा 1. 10. 18 59 प्रत्यभिचार्य हविः 1. 7. 10 38 प्रत्यभ्यनुज्ञा --- क्रियतां 4. 7. 18 253 ' प्र त्वा मुञ्चामि वरुणस्य प्रदक्षिणं परीत्य 1. 7. 19 42 2. 1. 12 140 $ प्रदक्षिणमग्निमुदकुम्भं प्रदक्षिणमुपचारः प्र धारा यन्तु मधुनः प्रयाण उपपद्यमाने 1. 7.6 36 2. 5. 17 165 3. 11. 14. 221 1. 8. 1 45 प्रवासादेत्य पुत्रस्य 1. 15. 11 86 प्रसंख्याय हैके प्रसव्येनेतरपाण्यङ्गुष्ठ प्रसृष्टा अनुमन्त्रयेत प्राक्संस्थान्युदक्संस्थानि वा प्राग्वोदग्वा ग्रामात् प्राचीनावीती प्राजापत्यं तत् प्राजापत्यस्य स्थालीपाकस्य प्राणापानयोरुपांशु प्राप्य गृहानश्मानमग्नि प्राप्यैतं भूमिभागं प्रेष्यति युगपदग्नीन् बर्हिष पूर्णपात्रं निनयेत् बहुलौषधिकम् बह्वनं भवति बाहू राजन्य: 2. 1. 16 141 4. 7. 11 251 4. 7. 14 252 1. 10. 19 59 3.2.2 187 3. 4. 4 192 3.5. 16 199 1. 13.8 77 3.9.3 216 4.4. 12 238 4.2. 11 228 4. 4, 1 235 छ 1.10.26 61 4. 1. 13 225 2.7.9 174 3. 8. 15 210
पृष्ठम्:Ashwalayana gruhya sutra bhashyam.pdf/३१५
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