INDEX OF SŪTRA-S २७५ Sutra पश्चादग्नेः स्वस्तरः पश्चादग्नेर्दृषदमश्मानं पाकयज्ञान् समासाद्य पाणिग्रहणादि गृह्यं पादौ पूर्वं शिर उत्तरम् पादौ प्रक्षालापयीत पिङ्गलोऽनड्वान् परिणेयः पिण्डपितृयज्ञकल्पेन पिण्डैव्र्याख्यातम् Chap. Page Section and No. 2.3.7 146 1.7.3 34 1. 3. 11 23 1.9.1 50 4.5.5 241 1.24.10 129 4.6. 15 247 2. 5.4 160 4.7.6 250 पिण्डवौ चैके 4. 3. 21 234 पितृभ्योऽयुक्षु प्रतिष्ठापयेत् 2.5.12 164 पीठचक्रेण गोयुक्तेन 4.2.4 226 पीतं वैश्यस्य 2.8.12 177 पुत्रः कुमार्यन्तेवासी वा 1.9.3 51 पुरोदयादग्नि सह 4.6.2 242 पुष्टिकामस्तेजस्कामो वा 3.8.7 208 पूर्वासु पितृभ्यो दद्यात् 2.5. 8 162 पृषातकमञ्जलिना 2. 2. 3 142 पौर्णमास्यां वा 2.3.2 144 प्रकीर्यानमुपवीयों 4. 7. 31 256 प्रक्षालितपादोऽध्यं 1.24. 13 130 प्रच्छिद्य प्रच्छिद्य प्रागग्रात् 1. 17. 11 93 प्रच्छिनत्ति-' येनावपत् 1. 17. 10 92 प्रजापतिर्ब्रह्मा वेदा देवा: प्रजावज्जीवपुत्त्राभ्यां प्रतिपुरुषं पितॄन् प्रतिभयं चेदन्तरा प्रत्तासु च स्वीषु 3.4.2 192 1. 13.7 76 3.4.6 193 1. 12.4 72 4.4.21 239
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