बुरा (धा० ८० ) [ वृति। निघटाना | ॠन् (धा० था० ) ( नृत्यते ) 1 पसंद करना बुन लेना। २ बाँटना। [ उभ० वर्तयति-वर्त ] चमकाना । वृत्त (व० कृ० ) चुना हुआ छटा हुआ २ पर्दा पड़ा हुआ ढका हुआ। ३ छिपा हुआ। ४ घिरा हुआ। रज़ामंत्र | ६ भाड़े पर उठाया हुआ ७ भ्रष्ट किया हुआ सेवित । वृतिः ( श्री० ) चुनाव छाँट ३ याचना | ४ विनय प्रार्थना ६ हाता घेरा घेरने वाला। १ कृतिकर ) वृतिङ्कर ) (500) २ छिपाव | दुराव २ घेरा लपेटन $ ( वि० ) घेरने वाला लपेटने वाला ( पु० ) विकत नामक वृद्ध वृतिंकर ) वृतिङ्करः वृत्त (व० ० ) १ घटित हुआ। ३ } जीवित वर्तमान | २ हुआ। पूर्णता को प्राप्त ४ कृत। किया हुआ। २ बीता हुआ गुज़रा हुआ ६ : वर्तुल गोल । ७ मृत | मरा हुआ मज़बूत | १ अधीठ पड़ा हुआ १० (किसी से ) निकला हुआ। ११ प्रसिद्ध अन्तः (पु०) १ अवसर मौका | २ संवाद | समाचार | खबर३ किसी बीती हुई घटना का विवरण | इतिहास | इतिवृत्त कथा | कहानी | ४ विषय | प्रसङ्ग | ५ जाति । क़िस्म | तरह | ६ तौर तरीका : उंग | ७ दशा | हास्रव ८ सम्पूर्खता समस्तता | ९ विश्राम अवकाश फुरसत ३० भाव - इचोरुः (पु० ) - कर्कटी, (सी०) हिंगवाना । कींदा तरबूज |-गन्धि, ( न० ) वह गद्य जिसमें अनुप्रासों और समासों की अधिकता हो। यह गद्य जिसे पढ़ने से पद्म पढ़ने जैसा मानन्द प्राप्त हो!-चूड, खौल (वि० ) यह जिसका मुण्डन संस्कार हो चुका हो।-पुप्पः, (पु० ) १ जलयेत । २ सिरिस का पेड़ ३ क का पेड़ ४ भुइकब ५ सदागुलाब सेवती । ६ मोतिया ! महिला-फलः, (पु० ) १ कैथा का पेड़ | 4 - वृत्तिः २ अनार का पेड़ । -शस्त्र, ( वि ) शखचालन कक्षा में पारदर्शी या पटु वृत्तः ( पु० ) कछुवा वृत्त ( न० ) १ घटना | २ इतिहास । वृत्तान्त । ३ संवाद खबर ४ पेशा धंधा ● चरित्र | चालचलन | ६ सचरित्र अच्छा चालचलन ७ शास्त्रानुमोदित विधान। चलन पद्धति । कर्तव्य | पृष्ठ का व्यास चुन्द वृत्तिः ( स्त्री० ) १ अस्तित्व | २ परिस्थिति | ३ दशा ४ किया। कर्म विधान १ वौर। तरीका | ढंग | ६ थालचलन | आचरण ७ 1 1 उजरत | भाड़ा व्याख्या ठीका धंधा पेशा ८ जीविका | रोज़ो | ६ मज़दूरी | १० सम्मानपूर्ण व्यवहार | ११ शब्दार्थ | १२ चहर धुमाव । १३ वृत्त या पहिये का व्यास या घेरा । १४ व्याकरण में सूत्र जो व्याख्या की अपेक्षा रखते हैं। १२ शब्द की वह शक्ति जिसके द्वारा यह किसी अर्थ को बतलाता या प्रकट करता है। (यह अर्थ तीन प्रकार के माने गये हैं- यथा अभि- घात्मक, लचणात्मक और व्यञ्जनात्मक ) | १६ वाक्यरचना की शैली [ शैली चार प्रकार की मानी गयी है। यथा-कैशिकी, भारती, साध्वती और आरभटी। इनमें से शृङ्गार रस वर्णन के लिये कैशिकीवृत्ति, वीररस के लिये सात्यतीवृत्ति, रौद्र और वीभत्स रसों का वर्णन करने के लिये धारभटी वृत्ति तथा अवशेष रसों का वर्णन करने के लिये भारतीवृत्ति से काम लिया जाता है। ] - अनुप्रासः (=वृत्यनुप्रासः ) ( पु० ) पांच प्रकार के अनुप्रासों में से एक प्रकार का अनुप्रास जो काव्य में एक शब्दालङ्कार माना गया है। इसमें एक अथवा अनेक व्यञ्जन वर्ण एक ही या मिन भिन्न रूपों में वरावर व्यवहृत किये जाते हैं। -उपायः (पु०) जीविका का ज़रिया था साधन | -कर्षित, (वि०) जीविका के अभाव से दुःखी । -वर्क, ( न० ) राजचक्र /- छेदः, (पु० ) किसी की जीविका का अपहरण -भङ्गः, (पु० ) -वैकल्यं. (न०) जीविका का प्रभावस्था, ( वि० ) १ वह जो अपनी वृत्ति पर स्थित हो ।
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