( ३३४ ) अठर जाठर (वि० ) [ स्त्री०-जाठरी ] पेट सम्बन्धी या पेठ का । जाठर: ( पु० ) पाचन शक्ति । जाड्यं ( न० ) १ ठिठुरन | इठन | २ सुस्ती | अकर्म- एयता | ३ मूर्खता । जड़ता | ४ जिह्वा का स्वाद राहित्य | जात (व० कृ० ) १ उत्पन्न | पैदा हुआ | २ निकला हुआ। बढ़ा हुआ | ३ कारणीभूत ४ द्रवित । दुःखी । – अपत्या, ( श्री० ) माता । श्रमर्ष, ( वि० ) क्रुद्ध | रोपित । -अश्रु. ( वि० ) आँसू बहाता हुआ | रोता हुआ । इष्टिः, ( स्त्री० ) पुत्रोत्पन्न के समय किया जाने वाला धर्मकृष्ण विशेष । - उत्तः, ( पु० ) जवान बैल | -कर्मन, ( न० ) बालक उत्पन्न होने के समय किया जाने वाला कर्म विशेष-कलाप, (वि०) पूछ वाला ( जैसे मोर ) । –काम, (वि० ) मोहित | लहू | लवलीन --पक्ष, ( वि० ) पंखोंवाला-पाश, (वि० ) बेड़ी पड़ा हुआ। -प्रत्यय, (वि० ) विश्वास दिलाया हुआ।- सन्मथ, ( वि० ) प्रेमासक्त | -मात्र, ( वि० ) हाल का जन्मा हुआ। --रूप, ( वि० ) सुन्दर । कान्तिमान । –रूपम्, ( न० ) सुवर्ण | सोना । - वेदस्, (पु० ) अग्नि । जातक (वि० ) उत्पन्न । जामिः ( स्त्री० ) जायफल का छिलका । -धर्मः, (पु० ) १ वर्ण धर्म । २ जातीय गुण । -ध्वंसः, ( पु० ) वर्णच्युति या वर्णाधिकार से बहिष्कृति ।-पत्री, (स्त्री०) जायफल का ऊपरी छिलका /--ब्राह्मणः, ( पु० ) केवल जन्म से ब्राह्मण किन्तु कर्म से नहीं। अपद ब्राह्मण 1 - भ्रंशः, ( पु० ) जाति- भ्रष्टता।-लक्षणं, ( न० ) जातीय पहिचान | —बैरं, (न० ) स्वाभाविक शत्रुता । वैरिन्, ( पु० ) स्वाभाविक बैरी 1 - शब्दः, ( पु० ) संज्ञा :- सङ्करः, ( पु० ) दोगला । वर्णसङ्कर । -सम्पन्न, ( वि० ) कुलीन | उत्तम कुल का | सारं, ( म० ) जायफल 1 - स्मर, ( वि० ) पिछले जन्म का वृत्तान्त स्मरण रखने वाला - होन, ( चि० ) नीच जाति का । जातिच्युत । जातिमत् (वि० ) कुलीन | उत्तम कुल का । जातु ( अभ्यय० ) १ समस्त । नितान्त | किसी समय सम्भवतः | २ कदाचित् । कभी कभी ३ एक बार किसी समय किसी दिन । जातुधान: ( पु० ) राक्षस दैत्य | पिशाच आतुष (वि० ) [स्त्री० - जातुषी] १ लाख का बना या लाख से ढका हुआ । २ चिपचिपा । चिप कने वाला | जातकं ( पु० ) १ सद्योजात बालक | २ भिक्षुक । जातकः ( न० ) १ जासकर्म वालक के उत्पन्न होने पर किया जाने वाला कर्म । २ जन्मकुण्डली | ३ समान वस्तुओं का जोड़ था ढेर । जातिः ( स्त्री० ) १ उत्पत्ति | जन्म १२ जन्म से " निश्चित होने वाली जाति । ३ वर्ण । जाति । वंश । कुल । ४ जाति । ५ श्रेणी कक्षा । किसी वस्तु या जीव की पहिचान का चिन्ह या विशेषता विशेष | ७ अग्निकुण्ड ८ जाय- फल । ( चमेली के फूल या पौधा १० अव्यव- हार्य उत्तर (न्याय में) । ११ सरगम | सारेगम पा धा नी सा । १२ छन्द विशेष - संध: (०) जन्म से बँधा ।—कोशः, कोषः, ( पु० ) कोपम् ( न० ) जायफल । —कोशी, कोपी, जात्य ( वि० ) १ एक ही कुल वाला ! २ कुलीन । ३ मनोहर । प्रिय प्रसन्नकर। जानकी ( स्त्री० ) श्रीरामचन्द्र जी की पत्नी सीता । जानपदः ( पु० ) १ ग्रामवासी । ग्रामीण । गँवार । किसान २ देहाव । ३ प्रजा । जानु ( न० ) घुटना |~दन, (वि० ) घुटनों तक । घुटनों जितना गहरा। -फन्तकम्, (न० ) मण्डलम्, (न० ) खुरिया चपनी । जापः ( पु०) १ जप । फुसफुसाहट । गुनगुनाहट । बर- बराना | २ मंत्र का जप जाचालः (पु० ) बकरों का समूह जामदग्न्यः ( पु० ) परशुराम का नाम । जामा ( स्त्री० ) १ लड़की । २ यहू । बधू । जाना ( पु० ) १ दामाद | २ प्रभु | स्वामी | ३ सूरजमुखी । जामिः ( स्त्री० ) १ वहिन | २ लड़की | ३ वधू
पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/३४१
दिखावट