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पृष्ठम्:संस्कृत-हिन्दी शब्दकोशः (चतुर्वेदी).djvu/६

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श्री संस्कृत शब्दार्थ- कौस्तुभ P थ -संस्कृत और हिन्दी वर्णमाला का यह प्रथम अञ्चर है। बंगला आदि अन्य भाषायों की वर्णमाला का भी यही आदिम वर्णं है। इसका उच्चारण कण्ठ से होता है; अतः यह वर्ग करव्य कहलाता है। संस्कृत व्याकरण में उच्चारणभेद से इसके १८ मेद दिखलाए गए हैं। प्रथम -हस्व, दीर्घ | समझा जाता है। पुल्लिङ्ग में ( और प्लुत। तदुपरान्त-हस्व-उदास, हस्व- अनुदात्त, हुस्व-स्वरित; दीर्घ-उदात्त, दीर्घ-धनुदात्त, दीर्घ-स्वरित प्लुत उदात्त, प्लुत-अनुदात्त, प्लुत- स्त्ररित ये ६ प्रकार हुए। फिर अनुनासिक और अननुनासिक भेद से-इन के दुगुने १४२८३८ भेद हुए। व्यञ्जनों के उचारण में इस वर्ष की सहायता अपेक्षित रहती है। इसीसे संस्कृत या हिन्दी में क आदिक व अकार-स्वर-संयुक्त लिखे तथा बोले जाते हैं। न तत्पुरुष में भी 'न लोपो | नमः' ( पाणिनि-अष्टाध्यायी-- ६।३।७३ ) सूत्र से नकार का लोप हो जाने पर 'अ' वचता है। नज् - के अर्थ ६ हैं:--- , - तत्सादृश्यमभावश्च तद्भ्यत्वं सदस्यता | अप्राशस्त्यं विरोधश्च, नअर्थाः षट् प्रकीर्तिताः ॥ (उदाहरण क्रम से ) सादृश्य में-न माहाणः (अ) अभाव में-- पापम् (पापाभावः ) भिन्नता के ज्ञान में - अटः ( घटभिन्नः ) J न-लोप मायभाव में कालः (अप्रशसकालः ) विरोध में- अनादरः (आदरबिरोधी-तिरस्कार) में इतनी विशेषता है कि, स्वरवर्ण परे रहते जुम् का आगम हो जाता है। जैसे, “अनादरः" । (अर्थ) विष्णु। कहीं कहीं बढ़ का अर्थ भी प्रथमा द्वितीया तृतीया चतुर्थी अंशः एक० द्वि० बहु० श्री श्राः श्रौ अंशः ( पु० ) एन श्राय आलू-श्राद् अस्थ ए आभ्याम् ऐः 22 " आन् यो एभ्यः [13] आनां पष्टी सप्तमी ऐपु 22 । अंश (धा० उ० ) [ अंशयति-अंशयते ]: विभाजित करना । बाँटना | भाग कर के बाँटना २ करना। इसी अर्थ में अंशापयति भी व्यवहत होता है। भाग हिस्सा बाँट । २ भाज्य अङ्क | ३ भिन्न की लकीर के ऊपर की संख्या ४ चौधा भाग ५ कला | ६ सोलहवाँ हिस्सा । ७ वृत्त की परिधि का ३६०वाँ हिस्सा, जिसे इकाई मान कर कोण या चाप का परिमाण बतलाया जाता है। ८] कंधा वारह आदित्यों में से एक- अंशः