जिसमें बात, पित्त, कफ ये तीनो पूर्ण वृद्धि होते हैं तिस नाडीको
आयुर्वेदके जाननेवाले कष्टसाध्य अथवा असाध्य कहते हैं ।।४९।।
कंदमध्ये स्थिता नाड़ी सुषुम्नेति प्रकीर्तिता।
तिष्ठन्ते परितः सर्वाश्चक्रेऽस्मिन्नाडिकास्ततः ॥५०॥
सूंडी (नाभि) के बीचमें सुषुम्नानाड़ी स्थित कही है और
एक नाड़ीके सब भागों विषे सूंडी अर्थात नाभीचक्रमें सब नाड़ी स्थित हैं॥५०॥
सार्द्धत्रिकोट्योनाड्योहिस्थूलाःसूक्ष्माश्चदेहिनाम् ।
नाभिकन्दनिबद्धास्तास्तिर्यगूर्ध्वमधः स्थिताः ॥५१॥
देहधारियोंके शरीरमें साढ़े तीन करोड़ स्थूल और सूक्ष्म नाड़ी हैं और सब नाड़ी नाभीके मूलमें बंधी हुई और टेढ़ी, ऊपरको नीचे को ऐसे स्थित हैं ॥५१॥
तिस्रः कोट्यर्द्धकोटी च यानि लोमानि मानुषे ।
नाडीमुखानि सर्वाणि धर्मबिंदुं, क्षरंति च ॥५२॥
मनुष्योंके शरीरमें साढे तीन करोड़ रोम हैं वे सब नाड़ियोंके मुख हैं तिन्होंके द्वारा पसीना निकलता है ॥५२।।
नानानाडीप्रसवजं सर्वभूतान्तरात्मनि ।
ऊर्ध्वमूलमधःशाखं वायुमार्गेण सर्वगम् ॥५३॥
सब मनुष्योंके अंतरात्मामें ऊपरको मूलवाला ब्रह्म है, नीचेका शाखावाला हिरण्यगर्भादि हैं, सो प्राण आदि वायुके मार्गके द्वारा सर्वव्यापी हैं ।।५३॥
द्विसप्ततिसहस्राणि नाड्यः स्युर्वायुगोचराः।
तर्पयन्ति रसैर्देहं नद्यस्तोयैरिवार्णवम् ॥
द्विसप्ततिसहस्रन्तुतासांस्थूलाःप्रकीर्तिताः ॥५४॥
१००२ नाडी वायुके अनुकूल हैं सब नाड़ीरसोंकरके देहको तृप्त करती है, जैसे नदी जलसे समुद्रको। तिन्हें में १०७२ स्थूल नाड़ी कही हैं ॥५४॥