अंगुलीभिस्त्रिभिः स्पृष्ट्वा क्रमाद्दोषत्रयोद्भवाम् ।
मंदांमध्यगतांतीक्ष्णां त्रिभिर्दोषैस्तु लक्षयेत् ॥१०॥
तीन अंगुलियोंसे नाडीको स्पर्श कर पीछे क्रमसे वात, पित्त, कफ इन्होंके योग से मंद, मध्य, तीक्ष्ण नाड़ीको तीन दोषोंसे लक्षित करे।।१०॥
वातं पित्तं कफं द्वन्द्वं त्रितयं सान्निपातिकम् ।
साध्यासाध्यविवेकं च सर्वं नाडी प्रकाशते ॥११॥
वात, पित्त, कफ, वातपित्त, वातकफ, पित्तकफ, सन्निपात और साध्य असाध्यकी विवेचना इन सबोंको नाड़ी प्रकाश करती है ।।११।।
स्नायुर्नाडी तथा हिंस्रा धमनी धारिणीधरा।
तंतुकी जीवनज्ञाना शब्दाःपर्यायवाचकाः ॥१२॥
स्नायु, हिंस्रा, धमनी, धारिणी, धरा, तंतुकी, जीवनज्ञाना ये सब नाड़ीके नाम हैं ॥१२॥
सद्यः स्नातस्य भुक्तस्य तथा स्नेहावगाहिनः ।
क्षुत्तृषार्तस्य सुप्तस्यनाडीसम्यङ् न बुध्यते ॥१३॥
तत्काल न्हाये हुए की और भोजन किये हुए की और तेल घृत आदि स्नेह लगाकर स्राव करनेवाली की भूख और तृषासे पीडित हुएकी और निद्रामें सोते हुएकी नाड़ी अच्छी तरह नहीं जानी जाती है ॥१३॥
अङ्गुष्ठमूलभागे या धमनी जीवसाक्षिणी ।
तच्चेष्टया सुखं दुःखं ज्ञेयं कायस्य पंडितैः ॥१४॥
अंगूठेके मूल भागमें जो जीवसाक्षिणी धमनी है, तिसकी गतिसे पंडितोंको शरीरका सुख दुःख जानना चाहिये ।।१४।।
स्त्रीणां भिषग्वामहस्ते वामे पादे च यत्नतः ।
शास्त्रेण संप्रदायेन तथा स्वानुभवेन वै ॥१५॥
परीक्षेद्रत्नवच्चा सावभ्यासादेव ज्ञायते ॥१६॥