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पुटमेतत् सुपुष्टितम्
नाडीपरीक्षा

 शास्त्रकी संप्रदायकरके तथा अपने अनुभवसे वैद्य स्त्रियोंके बायें हाथमें और बायें पैरमें रत्नकी समान नाड़ीकी परीक्षा करे, यह नाड़ी अभ्याससे जानी जाती है ।।१५।।१६।।

वातनाडी भवेद् ब्रह्मा पित्तनाडी च शंकरः।
श्लेष्मनाडी भवेद्विष्णुस्त्रिदेवानाडिदेवताः ॥१७॥

 वायुकी नाड़ी के ब्रह्मा देवता है, पित्त की नाड़ी के महादेव, कफकी नाड़ी के विष्णु देवता हैं, ऐसे ये तीनों देवता नाड़ी के हैं ।।१७।।

अग्रे वातवहा नाडी मध्ये भवति पित्तला।
अंते श्लेष्मविकारेण नाडी ज्ञेया बुधैः सदा ॥१८॥

 वायुको बहनेवाली नाड़ी अग्र भागमें होती है, पित्त को बहनेवाली नाड़ी मध्य भागमें होती है और कफको बहनेवाली नाड़ी अंतमें होती है, ऐसे वैद्यको सब कालमें नाड़ी जाननी चाहिये ।।१८।।

वाताद्वक्रगतिर्नाडी पित्तादुत्प्लुत्य गामिनी ।
कफान्मंदगतिर्ज्ञेया संनिपातादतिद्रुतम् ॥१९॥

 वायुके कोपसे नाड़ी टेढ़ी गतिवाली होती है, पित्तके कोपसे नाड़ी कूद कूदकर चलती है, कफके कोपसे नाड़ी मंद गतिवाली जाननी, सन्निपातके कोपसे नाड़ी अति शीघ्र चलती है ।।१९।।

सर्पजलौकादिगतिंवदंति विबुधाः प्रभंजननाडीम् ।
पित्तेन काकलावकमंडूकादेस्तथा चपलाम् ॥२०॥

 वैद्यजन वायुके कोष(प)में सर्प जलौका आदिके समान चलनेवाली नाड़ी होती है ऐसा कहते हैं और पित्तके कोपमें काक, लावा, मेंडक आदिके समान चलनेवाली और चपल नाड़ी होती है ऐसा कहते हैं ।।२०।।

राजहंसमयूराणां पारावतकपोतयोः ।
कुक्कुटस्य गतिं धत्ते धमनी कफसंगिनी ॥२१॥

 कफके कोपमें राजहंस, मोर, परेवा, कपोत, मुरगा इन्होंके समान चलनेवाली नाड़ी होती है ।।२१।।