महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-182
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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रामेण रथादधः पातितस्य भीष्मस्य दिव्यपुरुषैः समाश्वासनम् ।। 1 ।।
भीष्मेण रामस्य रथादधः पातनम् ।। 2 ।।
समुद्बुध्य पुनर्युयुत्सो रामस्य महर्षिभिर्युद्धात्प्रतिनिवर्तनम् ।। 3 ।।
भीष्म उवाच। | 5-182-1x |
ततः प्रभाते राजेन्द्र सूर्ये विमलतां गते। | 5-182-1a 5-182-1b |
ततोऽभ्रान्ते रथे तिष्ठन्रामः प्रहरतां वरः। | 5-182-2a 5-182-2b |
ततः सूतो मम सुहृच्छरवर्षेण ताडितः। | 5-182-3a 5-182-3b |
ततः सूतो ममात्यर्थं कश्मलं प्राविशन्महत् । | 5-182-4a 5-182-4b |
ततः सूतो जहात्प्राणान्रामबाणप्रपीडितः। | 5-182-5a 5-182-5b |
ततः सूते हते तस्मिन्क्षिपतस्तस्य मे शरान् । | 5-182-6a 5-182-6b |
ततः सूतव्यसनिनं विप्लुतं मां स भार्गवः । | 5-182-7a 5-182-7b |
स मे भुजान्तरे राजन्निपत्य रुधिराशनः। | 5-182-8a 5-182-8b |
मत्वा तु निहतं रामस्ततो मां भरतर्षभ । | 5-182-9a 5-182-9b |
तथा तु पतिते राजन्मयि रामो मुदा युतः। | 5-182-10a 5-182-10b |
मम तत्राभवन्ये तु कुरवः पार्श्वतः स्थिताः । | 5-182-11a 5-182-11b 5-182-11c |
ततोऽपश्यं पतितो राजसिंह | 5-182-12a 5-182-12b 5-182-12c 5-182-12d |
रक्ष्यमाणश्च तैर्विप्रैर्नाहं भूमिमुपास्पृशम् । | 5-182-13a 5-182-13b |
श्वसन्निवान्तरिक्षे च जलबिन्दुभिरुक्षितः । | 5-182-14a 5-182-14b |
मा भैरिति समं सर्वे स्वस्ति तेऽस्त्विति चासकृत्। | 5-182-15a 5-182-15b 5-182-15c |
हयाश्च मे संगृहीतास्तयाऽऽस- | 5-182-16a 5-182-16b 5-182-16c 5-182-16d |
ररक्ष सा मां सरथं हयांश्चोपस्काराणि च। | 5-182-17a 5-182-17b |
ततोऽहं स्वयमुद्यम्य हयांस्तान्वातरंहसः। | 5-182-18a 5-182-18b |
ततोऽहं भरतश्रेष्ठ वेगवन्तं महाबलम् । | 5-182-19a 5-182-19b |
ततो जगाम वसुधां मम बाणप्रपीडितः । | 5-182-20a 5-182-20b |
ततस्तस्मिन्निपतिते रामे भूरिसहस्रदे । | 5-182-21a 5-182-21b |
उल्काश्च शतशः पेतुः सनिर्घाताः सकम्पनाः। | 5-182-22a 5-182-22b |
ववुश्च वाताः परुषाश्चलिता च वसुंधरा । | 5-182-23a 5-182-23b |
दीप्तायां दिशि गोमायुर्दारुणं मुहुरुन्नदत् । | 5-182-24a 5-182-24b |
एतदौत्पातिकं सर्वं घोरमासीद्भयंकरम् । | 5-182-25a 5-182-25b |
ततो वै सहसोत्थाय रामो मामभ्यवर्तत । | 5-182-26a 5-182-26b |
आददानो महाबाहुः कार्मुकं तालसन्निभम् । | 5-182-27a 5-182-27b |
महर्षयः कृपायुक्ताः क्रोधाविष्टोऽपि भार्गवः । | 5-182-28a 5-182-28b |
सतो रविर्मन्दमरीचिमण्डलो | 5-182-29a 5-182-29b 5-182-29c 5-182-29d |
एवं राजन्नवहारो बभूव | 5-182-30a 5-182-30b 5-182-30c 5-182-30d |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-182-2 अभ्रान्ते मेघमण्डलसमीपे ।। 5-182-12 द्विजान् ब्राह्मणरूपधरान् वसून् ।। 5-182-21 भूयिप्तहस्नदे स्वर्णसहस्राणां दातरि ।। 5-182-22 सकम्पनाः सविद्युतः ।। 5-182-23 बलाः बलाकाः ।। 5-182-30 कल्यंकल्यं प्रातःप्रातः ।।
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