महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-042
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सनत्सुजातेन धृतराष्ट्रंप्रति तत्त्वोपदेशः ।। 1 ।।
वैशंपायन उवाच। | 5-42-1x |
ततो राजा धृतराष्ट्रो मनीषी | 5-42-1a 5-42-1b 5-42-1c 5-42-1d |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-42-2x |
सनत्सुजात यदिमं शृणोमि | 5-42-2a 5-42-2b 5-42-2c 5-42-2d |
सनत्सुजात उवाच। | 5-42-3x |
अमृत्युं कर्मणा केचिन्मृत्युर्नास्तीति चापरे। | 5-42-3a 5-42-3b |
उभे सत्ये क्षत्रियाद्य प्रवृत्ते | 5-42-4a 5-42-4b 5-42-4c 5-42-4d |
प्रमादाद्वै असुराः पराभव- | 5-42-5a 5-42-5b 5-42-5c 5-42-5d |
यमं त्वेके मृत्युमतोऽन्यमाहु- | 5-42-6a 5-42-6b 5-42-6c 5-42-6d |
अस्यादेशान्निःसरते नराणां | 5-42-7a 5-42-7b 5-42-7c 5-42-7d |
ते मोहितास्तद्वशे वर्तमाना | 5-42-8a 5-42-8b 5-42-8c 5-42-8d |
कर्मोदये कर्मफलानुरागा- | 5-42-9a 5-42-9b 5-42-9c 5-42-9d |
तद्वै महामोहनमिन्द्रियाणां | 5-42-10a 5-42-10b 5-42-10c 5-42-10d |
अभिध्या वै प्रथमं हन्ति लोकान् | 5-42-11a 5-42-11b 5-42-11c 5-42-11d |
सोऽभिध्यायन्नुत्पतिष्णन्निहन्या- | 5-42-12a 5-42-12b 5-42-12c 5-42-12d |
कामानुसारी पुरुषः कामाननु विनश्यति। | 5-42-13a 5-42-13b |
तमोप्रकाशो भूतानां नरकोऽयं प्रदृश्यते। | 5-42-14a 5-42-14b |
अमूढवृत्तेः पुरुषस्येह कुर्या- | 5-42-15a 5-42-15b 5-42-15c 5-42-15d |
र्मृत्योर्यथा विषयं प्राप्य मर्त्यः ।। | 5-42-16f |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-42-17x |
यानेवाहुरिज्यया साधुलोकान् | 5-42-17a 5-42-17b 5-42-17c 5-42-17d |
सनत्सुजात उवाच। | 5-42-18x |
एवं ह्यविद्वानुपयाति तत्र | 5-42-18a 5-42-18b 5-42-18c 5-42-18d |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-42-19x |
कोऽसौ नियुङ्क्ते तमजं पुराणं | 5-42-19a 5-42-19b 5-42-19c 5-42-19d |
सनत्सुजात उवाच। | 5-42-20x |
दोषो महानत्र विभेदयोगे | 5-42-20a 5-42-20b 5-42-20c 5-42-20d |
य एतद्वा भगवान्स नित्यो | 5-42-21a 5-42-21b 5-42-21c 5-42-21d |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-42-22x |
यस्माद्धर्मान्नाचरन्तीह केचि- | 5-42-22a 5-42-22b 5-42-22c 5-42-22d |
सनत्सुजात उवाच। | 5-42-23x |
तस्मिन्स्थितौ वाप्युभयं हि नित्यं | 5-42-23a 5-42-23b 5-42-23c 5-42-23d |
गत्वोभयं कर्मणा युज्यते स्थिरं | 5-42-24a 5-42-24b 5-42-24c 5-42-24d |
धृतराष्ट्र उवाच। | 5-42-25x |
यानिहाहुः स्वस्य धर्मस्य लोका- | 5-42-25a 5-42-25b 5-42-25c 5-42-25d |
सनत्सुजात उवाच। | 5-42-26x |
येषां व्रतेऽथ विस्पर्धा बले बलवतामिव। | 5-42-26a 5-42-26b |
येषां धर्मे च विस्पर्धा तेषां जज्ज्ञानसाधनम्। | 5-42-27a 5-42-27b |
तस्य सम्यक्समाचारमाहुर्वेदविदो जनाः। | 5-42-28a 5-42-28b |
यत्र मन्येत भूयिष्ठं प्रावृषीव तृणोदकम्। | 5-42-29a 5-42-29b |
यत्राकथयमानस्य प्रयच्छत्यशिवं भयम्। | 5-42-30a 5-42-30b |
यो वा कथयमानस्य ह्यात्मानं नानुसंज्वरेत्। | 5-42-31a 5-42-31b 5-42-31c |
यथा खं वान्तमश्नाति श्वा वै नित्यमभूतये । | 5-42-32a 5-42-32b |
नित्यमज्ञातचर्या मे इति मन्येत ब्राह्मणः। | 5-42-33a 5-42-33b |
कोह्येवमन्तरात्मानं ब्राह्मणो हन्तुमर्हति। | 5-42-34a 5-42-34b |
योऽन्यथा सन्तमात्मानमन्यथा प्रतिपद्यते। | 5-42-35a 5-42-35b |
अश्रान्तः स्यादनादाता संमतो निरुपद्रवः। | 5-42-36a 5-42-36b |
अनाढ्या मानुषे वित्ते आढ्या दैवे तथा क्रतौ । | 5-42-37a 5-42-37b |
सर्वान्खिष्टकृतो देवान्विद्याद्य इह कश्चन। | 5-42-38a 5-42-38b |
यमप्रयतमानं तु मानयन्ति समाहिताः । | 5-42-39a 5-42-39b |
लोकः स्वभाववृत्तिर्हि निमेषोन्मषवत्सदा। | 5-42-40a 5-42-40b |
अधर्मनिपुणा मुढा लोके मायाविशारदाः । | 5-42-41a 5-42-41b |
न वै मानं च मौनं च सहितौ वसतः सदा। | 5-42-42a 5-42-42b |
श्रीर्हि मानार्थसंवासा सा चापि परिपन्थिनी । | 5-42-43a 5-42-43b |
द्वाराणि तस्येह वदन्ति सन्तो | 5-42-44a 5-42-44b 5-42-44c 5-42-44d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
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