महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-122
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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स्वदौहित्रादिदत्तपुण्यफलप्रभावेण पुनर्ययातेः स्वर्गगमनम् ।। 1 ।।
नारद उवाच। | 5-122-1x |
प्रत्यभिज्ञातमात्रोऽथ सद्भिस्तैर्नरपुङ्गवः। | 5-122-1a 5-122-1b 5-122-1c |
दिव्यमाल्याम्बरधरो दिव्याभरणभूषितः। | 5-122-2a 5-122-2b |
ततो वसुमनाः पूर्वमुच्चैरुच्चारयन्वचः ।। | 5-122-3a 5-122-3b |
प्राप्तवानस्मि यल्लोके सर्ववर्णेष्वगर्हया । | 5-122-4a 5-122-4b |
यत्फलं दानशीलस्य क्षमाशीलस्य यत्फलम् । | 5-122-5a 5-122-5b |
ततः प्रतर्दनोऽप्याह वाक्यं क्षत्रियपुङ्गवः । | 5-122-6a 5-122-6b |
प्राप्तवानस्मि यल्लोके क्षत्रवंशोद्भवं यशः । | 5-122-7a 5-122-7b 5-122-7c |
शिबिरौशीनरो धीमानुवाच मधुरां गिरम्। | 5-122-8a 5-122-8b |
सङ्गरेषु निपातेषु तथा तद्व्यसनेषु च । | 5-122-9a 5-122-9b |
यथा प्राणांश्च राज्यं च राजन्कामसुखानि च। | 5-122-10a 5-122-10b |
यथा सत्येन मे धर्मो यथा सत्येन पावकः । | 5-122-11a 5-122-11b |
अष्टकस्त्वथ राजर्षिः कौशिको माधवीसुतः। | 5-122-12a 5-122-12b |
शतशः पुण्डरीका मे गोसवाश्चरिताः प्रभो । | 5-122-13a 5-122-13b |
न मे रत्नानि न धनं न तथाऽन्ये परिच्छदा । | 5-122-14a 5-122-14b |
नारद उवाच। | 5-122-15x |
यथायथा हि जल्पन्ति दौहित्रास्तं नराधिपम् । | 5-122-15a 5-122-15b |
एवं सर्वे समस्तैस्ते राजानः सुकृतैस्तदा । | 5-122-16a 5-122-16b |
दौहित्राः स्वेन धर्मेण यज्ञदानकृतेन वै । | 5-122-17a 5-122-17b 5-122-17c |
राजान ऊचुः । | 5-122-18x |
राजधर्मगुणोपेताः सर्वधर्मगुणान्विताः । | 5-122-18a 5-122-18b |
।। इति श्रीमन्महाभारते |
5-122-1 प्रत्यभिज्ञातेति ।। 5-122-5 आधाने अग्र्याधानोपलक्षिते श्रौतधर्मे ।। 5-122-9 आपत्सु संकटेषु । व्यसनेषु द्यूतादिषु । खं स्वर्गम् ।।
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