महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-025
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सञ्जयेन युद्धनिन्दापूर्वकं पाण्डवैः शमस्वीकारस्य भीष्मधृतराष्ट्राद्यभिमतत्वकथनम् ।। 1 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 5-25-1x |
समागताः पाण्डवाः सृञ्जयाश्च | 5-25-1a 5-25-1b 5-25-1c 5-25-1d |
संजय उवाच। | 5-22-2x |
अजातशत्रुं च वृकोदरं च | 5-25-2a 5-25-2b 5-25-2c 5-25-2d |
पञ्चालानामधिपं चैव वृद्धं | 5-25-3a 5-25-3b 5-25-3c 5-25-3d |
शमं राजा धृतराष्ट्रोऽभिनन्द- | 5-25-4a 5-25-4b 5-25-4c 5-25-4d |
सर्वैर्धर्मैः समुपेतास्तु पार्थाः | 5-25-5a 5-25-5b 5-25-5c 5-25-5d |
न युज्यते कर्म युष्मासु हीनं | 5-25-6a 5-25-6b 5-25-6c 5-25-6d |
सर्वक्षयो दृश्यते यत्र कृत्स्नः | 5-25-7a 5-25-7b 5-25-7c 5-25-7d |
ते वै धन्या यैः कृतं ज्ञातिकार्यं | 5-25-8a 5-25-8b 5-25-8c 5-25-8d |
ते चेत्कुरूननुशिष्याथ पार्था | 5-25-9a 5-25-9b 5-25-9c 5-25-9d |
को ह्येव युष्मान्सह केशवेन | 5-25-10a 5-25-10b 5-25-10c 5-25-10d |
को वा कुरून्द्रोणभीष्माभिगुप्ता- | 5-25-11a 5-25-11b 5-25-11c 5-25-11d |
महद्बलं धार्तराष्ट्रस्य राज्ञः | 5-25-12a 5-25-12b 5-25-12c 5-25-12d |
कथं हि नीचा इव दौष्कुलेया | 5-25-13a 5-25-13b 5-25-13c 5-25-13d |
कृताञ्जलिः शरणं वः प्रपद्ये | 5-25-14a 5-25-14b 5-25-14c 5-25-14d |
प्रणान्दद्याद्याचमानः कुतोऽन्य- | 5-25-15a 5-25-15b 5-25-15c 5-25-15d |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-25-4 रथमयोजयत्। इह आगन्तुम्। राज्ञः तत् वचनं पाण्डवानां रोचतां ततश्च शमोऽस्तु ।। 4 ।। 5-25-5 संस्थानेनाकारेण। मार्दवेन कृपया। आर्जवेन अकौटिल्येन। अनृशंसाः अनुग्राः । ह्रीनिषेवाः लज्जापरायणाः ।। 5 ।। 5-25-6 हीनं हिंस्रं सत्त्वं बुद्धिसत्वं साधुत्वं वा। भीमसेनाः भीषणसैन्याः ।। 6 ।। 5-25-7 यत्र सङ्ग्रामे भावसंस्थः स इति शेषः ।। 7 ।। 5-25-8 ज्ञातीनां दुर्योधनादीनां कार्यं घोषयात्रायां गन्धर्वेभ्यो मोचनादिकं उपक्रुष्टं निन्दितम् ।। 8 ।। 5-25-9 निर्णीय निश्चयं कृत्वा। निगृह्य हत्वेत्यर्थः ।। 9 ।। 5-25-12 निःश्रेयसं निश्चयम् ।। 12 ।। 5-25-13 निर्धर्मार्थं धर्मार्थयोर्विरुद्धं कम कथं कुर्युः । प्रणतः अस्मीति शेषः ।। 13 ।। 5-25-14 साधनार्थं संधिकार्यस्य सिद्ध्यर्थं ब्रवीमि नतु युष्मान् भीषयामीत्यर्थः ।। 15 ।।
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