भोजप्रबन्धः तत्रान्तरे राजा मध्ये मानुषाः' इति संबोधनं श्रुत्वा वयं चेन्मानुषाः कौ युवाम्' इति तयोर्हस्तौ झटिति स्वहस्ताभ्यामग्रहीत् । ततस्तत्क्षणएव तावन्तर्धत्तां ब्रुवन्तावेव 'कालिदासेन पूरणीयं तुरीयचरणम्' इति । ततो राजा विस्मितःसर्वानाहूय तद्वृत्तमब्रवीत् । तच्छुत्वा सर्वेऽपि चमत्कृता विस्मिताश्च बभूवुः । इस कथन के बीच राजा ने 'मानुषो' यह संबोधन सुनकर कहा- यदि हम मानुष हैं तो तुम दोनों कौन हो'--और झट से अपने हाथों से उन दोनों के दोनों हाथों को पकड़ लिया । तो वे दोनों 'चौथे चरण की पूर्ति कालिदास द्वारा होगी', कहते हुए उसी. क्षण अंतर्धान होगये :: तो. विस्मित हुए राजा ने सब को बुलाकर वह हाल कहा । उसे सुनकर सभी चमत्कृत और 1 1 विस्मित हुए। ततः कालिदासेन तुरीयचरणं पूरितम्-- 'स्निग्धमुष्णं च भोजनम्' ।। ३२२॥ इति। ततो भोजोऽपि कालिदासं लीलामानुषं मत्वा परं संमानितवान् । अथ भोजनृपालः प्रतिदिनं संजातबलकान्तिर्ववृधे धाराधींशः कृष्णेतरपक्षे चन्द्र इव। तो कालिदास ने चौथा चरण पूरा किया-- चिकना गरम-गरम भोजन ।' तो भोज ने भी कालिदास को लीला मानुष (मनुष्य की लीला करनेवाला देव) मानकर परम संमान किया। तदनंतर धारा के अधीश्वर नरपाल भोज: बल और कांति पाकर उसी प्रकार स्वास्थ्य वृद्धि को प्राप्त करने लगे जिस.. प्रकार कि उजाले पाख में चंद्रमा बढ़ता है। (३५.) गाथासनाथा चीठिका ततः कदाचित्सिंहासनमलंकुर्वाणे श्रीभोजे कालिदास भवभूति दण्डि- बाण-मयूर वररुचि-प्रमृतिकवितिलककुलालंकृतायां सभायां द्वारपाल १२ मो०
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