पृष्ठम्:भोजप्रबन्धः (विद्योतिनीव्याख्योपेतः).djvu/१७९

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१७६ भोजप्रबन्धः ततस्तावूचतुः-'राजन्, न भेतव्यम् । रोगो निर्गतः । किंतु कुत्रचिदेकान्ते त्वया भवितव्यम्' इति । ततो राज्ञापि तथा कृतम् । तो राजाने उन दोनों को देखा और उनके मुख की कांति से उन्हें 'मनुष्य से भिन्न समझ कर वह इस निश्चय पर पहुँचा कि इन दोनों से इस रोग का निवारण हो सकता है और उनका उसने बहुत संमान किया । तो वे दोनों बोले--'राजन्, भय मत कीजिए। रोग चला गया, किंतु कहीं आप एकांत में हो जायें।' तो राजा ने वैसा ही किया। ततस्तावपि राजानं मोहचूर्णेन मोहंयित्वा शिरःकपालमादाय तत्करोटिकापुटे स्थितं शफरकुलं गृहीत्वा कस्मिंश्चिद्भाजने निक्षिप्य संधानकरण्या कपालं यथावदारचय्य संजीविन्या च तं जोषयित्वा तस्मै तद्दर्शयताम् । तदा तद्दृष्ट्वा राजा विस्मितः किमेतत्' इति तौ पृष्टवान् । तदा तावूचतुः-'राजन् त्वया बाल्यादारभ्य परिचितकपालशोधनतः संप्राप्तमिदम्' इति। तो उन दोनों ने भी. राजा को बेसुध करने वाले चूर्ण से बेसुध करके सिर का कपाल ले उसकी नस के पुट मे स्थित मछलियों को निकाल कर एक बरतन में रखा और सधि जोड़ने की क्रिया से कपाल को यथापूर्व करके और संजीवनी से राजा को चैतन्य करके उसे वे मछलियाँ दिखायीं । तब उन्हें देखकर विस्मित हुए राजा ने उनसे पूछा--'यह क्या है ?' तो वे दोनों बोले-'हे राजा, बचपन से लेकर जाने-बूझे कपाल-शोधन से तुमने इन्हें प्राप्त किया है।' ततो राजा तावश्विनौ मत्वा तच्छोधनार्थमपृच्छत्---'किमस्माकं पथ्यम्' इति । ततस्तावूचतुः-- 'अशीतेनाम्भसा स्नानं पयःपानं वराः स्त्रियः। एतद्वो मानुषाः पथ्यम्--इति । तो राजा ने उन दोनों को अश्विनी कुमार मानकर रोग ठीक करने की इच्छा से पूछा-~-'हमारा पथ्य क्या है ?' तो दोनों बोले- 'उष्ण जल से स्नान, दुग्ध का पान, सुगढ़ नारीजन, यही तुम्हारा पथ्य मानुषो-