महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-083
← उद्योगपर्व-082 | महाभारतम् पञ्चमपर्व महाभारतम्-05-उद्योगपर्व-083 वेदव्यासः |
उद्योगपर्व-084 → |
महाभारतस्य पर्वाणि |
---|
युधिष्ठिरेण श्रीकृष्णे पृथांप्रति कुशलप्रश्नपूर्वकस्वभिद्धादननिवेदनसमाश्वासनप्रार्थना ।। 1 ।।
श्रीकृष्णस्य मध्येमार्गं तामदग्न्यादिमहर्षिसमागमः ।। 2 ।।
महर्षिभिः श्रीकृष्णे धृतराष्ट्रादिभिः सह तत्संवादशुश्रूषया तत्र स्वागमननिवेदनम् ।। 3 ।।
युधिष्ठिर उवाच। | 5-83-1x |
या सा बाल्यात्प्रभृत्यस्मान्पर्यवर्धयताबला। | 5-83-1a 5-83-1b |
देवतातिथिपूजासु गुरुशुश्रूषणे रता। | 5-83-2a 5-83-2b |
सुयोधनभयाद्या नो त्रायतामित्रकर्शन । | 5-83-3a 5-83-3b |
अस्मत्कृते च सततं यया दुःखानि माधव । | 5-83-4a 5-83-4b |
भृशमाश्वासयेश्चैनां पुत्रशोकपरिप्लुताम् । | 5-83-5a 5-83-5b |
ऊढात्प्रभृति दुःखानि श्वशुराणामरिन्दम। | 5-83-6a 5-83-6b |
अपि जातु स कालः स्यात्कृष्ण दुःखविपर्ययः । | 5-83-7a 5-83-7b |
प्रव्रजन्तोऽनुधावन्तीं कृपणां पुत्रगृद्धिनीम् । | 5-83-8a 5-83-8b |
सा नूनं म्रियते दुःखैः सा चेज्जीवति केशव। | 5-83-9a 5-83-9b |
अभिवाद्याऽथ सा कृष्ण त्वया मद्वचवाद्विभो । | 5-83-10a 5-83-10b |
भीष्मं द्रोणं कृपं चैव महाराजं च वाह्लिकम्। | 5-83-11a 5-83-11b |
` यथावयो यथास्थानं प्रपद्यस्व जनार्दन।' | 5-83-12a 5-83-12b 5-83-12c |
वैशंपायन उवाच। | 5-83-13x |
इत्युक्त्वा केशवं तत्र राजमध्ये युधिष्ठिरः। | 5-83-13a 5-83-13b |
व्रजन्नेव तु बीभत्सुः सखायं पुरुषर्षभम् । | 5-83-14a 5-83-14b |
यदस्माकं विभो वृत्तं पुरा वै मन्त्रनिश्चये । | 5-83-15a 5-83-15b |
तच्चेद्दद्यादखङ्गेन सत्कृत्यानवमत्य च। | 5-83-16a 5-83-16b |
अतश्चेदन्यथाकर्ता धार्तराष्ट्रोऽनुपायवित्। | 5-83-17a 5-83-17b |
वैशंपायन उवाच। | 5-83-18x |
एवमुक्ते पाण्डवेन समहृष्यद्वृकोदरः। | 5-83-18a 5-83-18b |
वेपमानश्च कौन्तेयः प्राक्रोशन्महतो रजन्। | 5-83-19a 5-83-19b |
तस्य तं निनदं श्रुत्वा संप्रावेपन्त धन्विनः । | 5-83-20a 5-83-20b |
इत्युक्त्वा केशवं तत्र तथा चोह्वा विनिश्चयम्। | 5-83-21a 5-83-21b |
तेषु राजसु सर्वेषु निवृत्तेषु जनार्दनः। | 5-83-22a 5-83-22b |
ते हया वासुदेवस्य दारुकेण प्रचोदिताः । | 5-83-23a 5-83-23b |
अथापश्यन्महाबाहुर्ऋषीनध्वनि केशवः । | 5-83-24a 5-83-24b |
सोऽवतीर्य रथात्तूर्णमभिवाद्य जनार्दनः। | 5-83-25a 5-83-25b |
कच्चिल्लोकेषु कुशलं कच्चिद्धर्मः स्वनुष्ठितः । | 5-83-26a 5-83-26b 5-83-26c |
तेभ्यः प्रयुज्य तां पूजां प्रोवाच मधुसूदनः। | 5-83-27a 5-83-27b |
किं वा कार्यं भगवतामहं किं करवाणि यः । | 5-83-28a 5-83-28b |
` एवमुक्ताः केशवेन मुनयः शंसितव्रताः । | 5-83-29a 5-83-29b |
अधश्शिराः सर्पमाली महर्षिः स हि देवलः । | 5-83-30a 5-83-30b |
बको दाल्भ्यः स्थूलशिराः कृष्णद्वैपायनस्तथा। | 5-83-31a 5-83-31b |
दामोष्णीषस्त्रिषवणः पर्णादो घटजानुकः। | 5-83-32a 5-83-32b |
शीलवानशनिर्धाता शून्यपालोऽकृतव्रणः। | 5-83-33a 5-83-33b |
तमब्रवीज्जामदग्न्य उपेत्य मधुसूदनम्। | 5-83-34a 5-83-34b |
देवर्षयः पुण्यकृतो ब्राह्मणाश्च बहुश्रुताः । | 5-83-35a 5-83-35b |
दैवासुरस्य द्रुष्टारः पुराणस्य महामते। | 5-83-36a 5-83-36b 5-83-36c |
एतन्महत्प्रेक्षणीयं द्रुष्टुमिच्छाम केशव ।। | 5-83-37a |
धर्मार्थसहिता वाचः श्रोतुमिच्छाम माधव। | 5-83-38a 5-83-38b |
` सभायां मधुरा वाचः शुश्रूषन्तस्त्वयेरिताः । | 5-83-39a 5-83-39b |
भीष्मद्रोणादयश्चैव विदुरश्च महामतिः । | 5-83-40a 5-83-40b |
तव वाक्यानि दिव्यानि तथा तेषां च माधव। | 5-83-41a 5-83-41b 5-83-41c |
याह्यविघ्नेन वै वीर द्रक्ष्यामस्त्वां सभागतम्। | 5-83-42a 5-83-42b |
वैशंपायन उवाच। | 5-83-43x |
प्रयान्तं देवकीपुत्रं परवीररुजो दश। | 5-83-43a 5-83-43b |
पदातीनां सहस्रं च सादिनां च परन्तप। | 5-83-44a 5-83-44b |
।। इति श्रीमन्महाभारते उद्योगपर्वणि |
5-83-6 ऊढात् विवाहात्। श्वशुराणां गृहे इति शेषः ।। 5-83-36 पुराणस्य दैवासुरस्य देवासुरसमुदायस्य ।।
उद्योगपर्व-082 | पुटाग्रे अल्लिखितम्। | उद्योगपर्व-084 |