महाभारतम्-04-विराटपर्व-070
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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उत्तरजयश्रवणहृष्टेन विराटेन युधिष्ठिरेण सह द्यूतदेवनम् ।। 1 ।। विराटेनोत्तरप्रशंसने कङ्केन बृहन्नलया कुरुपराजयकथनम् ।। 2 ।। ततो रुष्टेन विराटेन कङ्कस्य कर्णमूलेऽक्षेणाभिहननम् ।। 3 ।। सैरन्ध्र्या क्षतात्प्रस्रवतो रक्तस्य निजोत्तरीयेण ग्रहणम् ।। 4 ।। तथा विराटेन तद्ग्रहणकारणप्रश्ने तत्कथनम् ।। 5 ।।
वैशंपायन उवाच । | 4-70-1x |
प्रस्थाप्य सेनां कन्याश्च गणिकाश्च स्वलंकृताः। | 4-70-1a 4-70-1b |
व्रिगर्ताः कुरवः सर्वे संग्रामे निर्जिता मया। | 4-70-2a 4-70-2b |
अक्षानाहर सैरन्ध्रि आसनं चोपकल्पय। | 4-70-3a 4-70-3b |
तं तथावादिनं दृष्ट्वा पाण्डवः प्रत्यभापत। | 4-70-4a 4-70-4b |
न त्वामद्य मुदा युक्तमहं देवितुमुत्सहे । | 4-70-5a 4-70-5b 4-70-5c |
विराट उवाच। | 4-70-6x |
स्त्रियो गावो हिरण्यं च यच्चान्यद्वसु किंचन। | 4-70-6a 4-70-6b |
कङ्क उवाच। | 4-70-7x |
किं ते द्यूतेन राजेन्द्र बहुदोषेण मानद। | 4-70-7a 4-70-7b |
श्रुतो वा यदि वा दृष्टो धर्मराजो युधिष्ठिरः । | 4-70-8a 4-70-8b |
कृष्णां च भार्यां दयितां भ्रातॄंश्च त्रिदशोपमान्। | 4-70-9a 4-70-9b |
विविधानां च रत्नानां धनानां च पराजये। | 4-70-10a 4-70-10b |
अविश्वास्यं बुधैर्नित्यमेकाह्ना द्रव्यनाशनम्। | 4-70-11a 4-70-11b |
अथवा मन्यसे राजन्दीव्याव यदि रोचते। | 4-70-12a 4-70-12b |
प्रवर्तमाने द्यूते तु मात्स्यः पाण्डवमब्रवीत् ।। | 4-70-13a |
पश्य पुत्रेण मे युद्धे तादृशाः कुरवो जिताः । | 4-70-14a 4-70-14b |
ततोऽब्रवीद्धर्मराजो द्यूते मात्स्यं युधिष्ठिरः। | 4-70-15a 4-70-15b |
अत्यद्भुततमं मन्ये उत्तरश्चेत्कूरूञ्जयेत्। | 4-70-16a 4-70-16b |
ततो विराटः क्षुभितो मन्युना च परिप्लुतः। | 4-70-17a 4-70-17b |
तादृशेन तु योधेन महेष्वासेन धीमता। | 4-70-18a 4-70-18b |
युधिष्ठिर उवाच। | 4-70-19x |
समं षण्डेन मे पुत्रं ब्रह्मबन्धो प्रशंससि। | 4-70-19a 4-70-19b |
विराट उवाच। | 4-70-20x |
समं षण्डेन मे पुत्रं ब्रह्मबन्धो प्रशंससि। | 4-70-20a 4-70-20b |
पुमांसो बहवो दृष्टाः सूताश्च बहवो मया। | 4-70-21a 4-70-21b |
विप्रियं न चरेद्राज्ञामनुकूलं प्रियं वदेत्। | 4-70-22a 4-70-22b |
वयस्यत्वात्तु ते सर्वमपराधमिमं क्षमे। | 4-70-23a 4-70-23b |
वैशंपायन उवाच। | 4-70-24x |
ततोऽब्रवीत्पुनः कङ्कः प्रहस्य कुरुवर्धनः । | 4-70-24a 4-70-24b |
उत्तरेण तु सारथ्यं कृतं नूनं भविष्यति। | 4-70-25a 4-70-25b 4-70-25c |
कुरवोऽपि महावीर्या देवैरपि सुदुर्जयाः। | 4-70-26a 4-70-26b |
यत्र शान्तनवो भीष्मो द्रोणकर्णौ सुदुर्जयौ। | 4-70-27a 4-70-27b |
भूरिश्रवाः शलो भूरिर्जलसन्धिश्च वीर्यवान्। | 4-70-28a 4-70-28b |
वृषसेनोऽश्ववेगश्च वायुवेगसुवर्चसौ । | 4-70-29a 4-70-29b |
सौबलः शकुनिश्चैव द्युमत्सेनश्च साल्वराट् । | 4-70-30a 4-70-30b |
कृपेणाचार्यमुख्येन सहिताः कुरवो नृपाः। | 4-70-31a 4-70-31b 4-70-31c |
मरुद्गणैः परिवृतः साक्षादपि पुरंदरः । | 4-70-32a 4-70-32b |
कस्तद्बृहन्नलादन्यो मनुष्यः प्रतियोत्स्यति। | 4-70-33a 4-70-33b |
अतीव समरं दृष्ट्वा हर्षो यस्याभिवर्धते। | 4-70-34a 4-70-34b |
वैशंपायन उवाच। | 4-70-35x |
तेन संक्षुभितो राजा दीर्यमाणेन चेतसा । | 4-70-35a 4-70-35b |
कङ्ख मा ब्रूहि मे वाक्यं प्रतिकूलं द्विजोत्तम । | 4-70-36a 4-70-36b |
नियन्ता चेन्न विद्येत न कश्चिद्धर्ममाचरेत्। | 4-70-37a 4-70-37b |
तस्य तक्षकभोगाभं बाहुमुत्क्षिप्य दक्षिणम्। | 4-70-38a 4-70-38b |
मुखे युधिष्ठिरं कोपान्मैवमित्यवभर्त्सयन्। | 4-70-39a 4-70-39b |
अक्षेणाभिहतो राजा विराटेन युधिष्ठिरः । | 4-70-40a 4-70-40b |
तस्य रक्तोत्पलनिभं शिरसः शोणितं तदा। | 4-70-41a 4-70-41b |
तदप्राप्तं महीं पार्थः पाणिभ्यां समधारयत्। | 4-70-42a 4-70-42b |
सा वेदनामभिज्ञाय भर्तुश्चित्तवशानुगा। | 4-70-43a 4-70-43b |
बाष्पं नियम्य कृच्छ्रेण भर्तुर्निःश्रेयसैषिणी । | 4-70-44a 4-70-44b |
निगृह्य रक्तं वस्त्रेण सैरन्ध्री दुःखमोहिता। | 4-70-45a 4-70-45b 4-70-45c |
विराट उवाच। | 4-70-46x |
सैरन्ध्रि किमिदं रक्तमुत्तरीयेण गृह्यते। | 4-70-46a 4-70-46b |
सैरन्ध्र्युवाच। | 4-70-47x |
रक्तबिन्दनि यावन्ति कङ्कस्य धरणीतले। | 4-70-47a 4-70-47b |
एतन्निमित्तं मात्स्येन्द्र कङ्कस्य रुधिरं मया। | 4-70-48a 4-70-48b |
यतीशं यो विहन्येत तस्यायुर्विनशिष्यति। | 4-70-49a 4-70-49b |
यतौ रक्तं दर्शयति यावत्पांसुरगृह्यत। | 4-70-50a 4-70-50b |
इति ज्ञात्वा विराटेन्द्र धृतं रक्तं च वाससा। | 4-70-51a 4-70-51b |
।। इति श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
4-70-10 धनानां च विना..... वाक्पारुष्यं चाभवदिति शेषपूरणेन योजना ।। 10 ।। 4-70-19 किं किमपि ।। 19 ।। 4-70-47 धरणीतले पतेयुरिति शेषः ।। 47 ।। 4-70-48 नियम्येत नियमयेत् तस्येति शेषः ।। 49 ।। 4-70-50 अगृह्यत गृह्येत रक्तेनेति ।। 50 ।। 4-70-51 इतीममर्थम् ।। 51 ।।
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