महाभारतम्-04-विराटपर्व-035
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महाभारतस्य पर्वाणि |
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सुशर्मणा युद्धे विराटस्य ग्रहणम् ।। 1 ।। भीमेन युधिष्ठिरचोदनया विराटस्य मोचनपूर्वकं सुशर्मणो बन्धनम् ।। 2 ।। युधिष्ठिरेण करुणया सुशर्मणो विमोक्षणम् ।। 3 ।।
वैशंपायन उवाच। | 4-35-1x |
तमसाऽभिप्लुते लोके रजसा चैव भारत। | 4-35-1a 4-35-1b |
ततोऽन्धकारं प्रणुदन्नुदतिष्ठन्निशाकरः। | 4-35-2a 4-35-2b |
ततः प्रकाशमासाद्य पुनर्युद्धमवर्तत। | 4-35-3a 4-35-3b |
तथैव तेषां तुमुलानि तानि क्रुद्धानि चान्योन्यमभिद्रवन्ति। | 4-35-4a 4-35-4b |
बलं तु मात्स्यस्य बलेन राजा सर्वं त्रिगर्ताधिपतिः सुशर्मा। | 4-35-5a 4-35-5b |
मत्ताविव वृषौ तौ तु गजाविव मदोद्धतौ । | 4-35-6a 4-35-6b |
उभौ तुल्यबलोत्साहावुभौ तुल्यपराक्रमौ। | 4-35-7a 4-35-7b |
तौ निहत्य पृथग्धुर्यानुभयोः पार्ष्णिसारथी । | 4-35-8a 4-35-8b |
ततः सुशर्मा त्रैगर्तः सह भ्रात्रा सुवर्मणा। | 4-35-9a 4-35-9b |
ततो रथाभ्यां प्रस्कन्द्य भ्रातरौ क्षत्रियर्षभौ। | 4-35-10a 4-35-10b |
सुशर्मा परवीरघ्नो बलवान्वीर्यवान्गदी। | 4-35-11a 4-35-11b |
तमुन्मथ्य सुशर्मा तु युवतीमिव कामुकः। | 4-35-12a 4-35-12b |
तस्मिन्गृहीते विरथे विराटे बलवत्तरे। | 4-35-13a 4-35-13b |
प्राद्रवन्त भयान्मात्स्यास्त्रिगर्तैरर्दिता रणे । | 4-35-14a 4-35-14b |
तेषु विद्रांव्यमाणेषु कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-35-15a 4-35-15b |
मात्स्यराजस्त्रिगर्तेन परामृष्टः सुशर्मणा। | 4-35-16a 4-35-16b |
भीमसेनः महाबाहो गृहीतं तु सुशर्मणा। | 4-35-17a 4-35-17b |
उषिताः स्म सुखं सर्वे सर्वकामैः सुपूजिताः। | 4-35-18a 4-35-18b |
वैशंपायन उवाच। | 4-35-19x |
तं तथावादिनं तत्र भीमसेनो महाबलः। | 4-35-19a 4-35-19b |
अहमेनं परित्रास्ये शासनात्तव पार्थिव। | 4-35-20a 4-35-20b |
स्वबाहुबलमाश्रित्य परेषामसमं रणे। | 4-35-21a 4-35-21b |
अयं वृक्षो महाशाखो गिरिमात्रो वनस्पतिः। | 4-35-22a 4-35-22b |
वैशंपायन उवाच। | 4-35-23x |
तं मत्तमिव मातङ्गं वीक्षमाणं वनस्पतिम्। | 4-35-23a 4-35-23b |
भीम मा साहसं कार्षीस्तिष्ठत्वेष वनस्पतिः ।। 24 ।। | 4-35-24a |
मा त्वां वृक्षेण कर्माणि कुर्वन्तमतिमानुषम् । | 4-35-25a 4-35-25b |
मा ग्रहीस्त्वमिमं वृक्षं सिंहनादं च मा नद। | 4-35-26a 4-35-26b |
इमं वृक्षं गृहीत्वा त्वं नेमां सेनामभिद्रव । | 4-35-27a 4-35-27b |
अन्यदेवायुधं गृह्य प्रतिपद्यस्व मानुषम्। | 4-35-28a 4-35-28b |
यदेव मानुषं भीम भवेदन्यैरलक्षितम् । | 4-35-29a 4-35-29b |
यमौ च चक्ररक्षौ ते भवितारौ महाबलौ। | 4-35-30a 4-35-30b |
वैशंपायन उवाच। | 4-35-31x |
भ्रातुर्वचनमादाय भीमो वृक्षं विसृज्य च। | 4-35-31a 4-35-31b |
व्यमुञ्चच्छरवर्षाणि सतोय इव तोयदः । | 4-35-32a 4-35-32b |
विराटमभिवीक्ष्यैनं तिष्ठितिष्ठेति चावदत् ।। 33 ।। | 4-35-33a |
सुशर्मा चिन्तयामास कालान्तकयमोपमम् । | 4-35-34a 4-35-34b |
पश्यतां सुमहत्कर्म महद्युद्धमुपस्थितम् । | 4-35-35a 4-35-35b |
निमेषान्तरमात्रेण भीमसेनेन ते रथाः । | 4-35-36a 4-35-36b |
सहस्रशतसंघाताः शूराणामुग्रधन्विनाम् । | 4-35-37a 4-35-37b |
पत्तयो निहतास्तेषां गदां गृह्य महात्मना ।। 38 ।। | 4-35-38a |
तद्दृष्ट्वा तादृशं युद्धं सुशर्मा युद्धदुर्मदः। | 4-35-39a 4-35-39b |
अपरो दृश्यते सैन्ये पुरा मग्नो महाबले। | 4-35-40a 4-35-40b |
सुशर्मा सायकांस्तीक्ष्णान्क्षिपते च पुनःपुनः ।। 41 ।। | 4-35-41a |
ततः समस्तास्ते सर्वे तुरगानभ्यचोदयन्। | 4-35-42a 4-35-42b |
तान्निवृत्तरथान्दृष्ट्वा पाण्डवास्तां महाचमूम् । | 4-35-43a 4-35-43b |
त्रिगर्ताः समभिक्रम्य अयुध्यन्त जयैषिणः। | 4-35-44a 4-35-44b 4-35-44c |
सहस्रं प्राहिणीद्राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। | 4-35-45a 4-35-45b |
शतानि त्रीणि शूराणां सहदेवः प्रतापवान् । | 4-35-46a 4-35-46b |
प्रविश्य महतीं सेनां त्रिगर्तानां महाबलः । | 4-35-47a 4-35-47b |
ततो युधिष्ठिरो राजा त्वरमाणो महाबलः। | 4-35-48a 4-35-48b |
सुशर्माऽपि सुसंक्रुद्धस्त्वराणो युधिष्ठिरम् । | 4-35-49a 4-35-49b |
ततो राजन्क्षिप्रकारी कुन्तीऽपुत्रो वृकोदरः। | 4-35-50a 4-35-50b |
पृष्ठगोषौ च तस्याथ हत्वा परमसायकैः। | 4-35-51a 4-35-51b |
चक्ररक्षस्तु शूरश्च शोणाश्वो नाम नामतः। | 4-35-52a 4-35-52b |
ततो विराटः प्रस्कन्द्य रथादथ सुशर्मणः। | 4-35-53a 4-35-53b |
स चचार गदापाणिर्वृद्धोऽपि तरुणो यथा ।। 54 ।। | 4-35-54a |
भीमस्तु भीमसंकाशो रथात्प्रस्कन्द्य वीर्यवान् । | 4-35-55a 4-35-55b 4-35-55c |
अग्राद्गिरेर्विनिक्षिप्य सिंहः क्षुद्रमृगं यथा। | 4-35-56a 4-35-56b |
समुद्यम्य तु रोषात्तं निष्पिपेष महीतले। | 4-35-57a 4-35-57b |
तस्य जानु ददौ भीमो जघ्ने चैनमरत्निना । | 4-35-58a 4-35-58b |
तस्मिन्वीरे गृहीते तु त्रिगर्तानां महारथे। | 4-35-59a 4-35-59b |
निवृत्य गास्ततः सर्वाः पाण्डुपुत्रा महारथाः। | 4-35-60a 4-35-60b |
स्वबाहुबलसंपन्ना ह्रीनिषेवा यतव्रताः। | 4-35-61a 4-35-61b 4-35-61c |
नायं पापसमाचारो मत्तो जीवितुमर्हति। | 4-35-62a 4-35-62b 4-35-62c |
तत एनं विचेष्टन्तं बद्ध्वा पार्थो वृकोदरः। | 4-35-63a 4-35-63b |
अभ्येत्य रणमध्यस्थमभ्यगच्छद्युधिष्ठिरम् । | 4-35-64a 4-35-64b |
प्रोवाच पुरुषव्याघ्रो भीममाहवशोभिनम् । | 4-35-65a 4-35-65b |
एवमुक्तोऽब्रवीद्भीमः सुशर्माणं महाबलम् । | 4-35-66a 4-35-66b |
दासोस्मीति त्वया वाच्यं संसत्सु च सभासु च । | 4-35-67a 4-35-67b |
तमुवाच ततो ज्येष्ठो भ्राता सप्रणयं वचः। | 4-35-68a 4-35-68b |
दासभावं गतो ह्येष विराटस्य महीपतेः। | 4-35-69a 4-35-69b |
एवमुक्ते तु सव्रीडः सुशर्माऽसीदधोमुखः । | 4-35-70a 4-35-70b |
विसृज्य तु सुशर्माणं पाण्डवास्ते हतद्विषः । | 4-35-71a 4-35-71b 4-35-71c |
।। श्रीमन्महाभारते विराटपर्वणि |
4-35-2 नन्दयन्क्षत्रियानिति थo पाठः ।। 2 ।।
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