स्वतो + चतुर्वेदीकोष । ४०२ स्वतो, ( न. ) किसी पदार्थ पर अगन्ध अधिकार | स्वधर्म, (पुं. ) वेदादि शास्त्र विहित अपना कर्म । अधःपात से बचाने वाला कार्य । स्वधा, ( श्रव्य. ) पितरों के उद्देश्य से हवि का देना । स्वधाप्रिय, (पुं. ) काला तिल । स्वधाभुज्, (पुं. ) पितृगण | देवता । स्वधिति, स्वधिती, } (खी.") क़ुठार । स्वन्, ( कि. ) शब्द करना । स्वन, ( पुं. ) शब्द | स्वनित, (त्रि. ) शन्दित । स्वपन, (न. ) शयन | सोना । नदि । स्वप्न, (पुं. ) नींद | सपना | स्वभाव, ( पुं. ) निज शील । स्वभावोक्लि, (स्त्री. ) अपने स्वभाव का कथन । स्वर्गीकस्, ( पं. ) देवता | स्वभू, (पुं. ) ब्रह्लाः । विष्णु । शिव जी । कामदेव | स्वयंवर, (पुं. ·) विवाह की एक पद्धति विशेष, जिसमें कन्या अपनी इच्छा के अनुसार वर को पसन्द कर स्वीकार करती है। स्वयंकृत, ( पुं. ) बनावटी । स्वयंदत्त, ( पुं. ) वह लड़का- जिसने अपने को अपने आप ही दिया हो। स्वयम्, (श्रव्य. ) आप ही आप | स्वर, ( श्रव्य. ) परलोक | अच्छा | देवताओं के रहने का स्थान । ( पु. ) अक्षर के उच्चारण का यह विशेष । गाने की आवाज । स्वरभङ्ग, (पुं.) एक प्रकार का रोग | गले की आवाज बैठ जाना । स्वरस, ( पुं. ) अपना अभिप्राय | वाक्य की रचना विशेष । किसी गीली वस्तु को कूट कर निचोया गया रस | स्वराज्, (पुं.) ईश्वर | वेद का छन्द विशेष | स्वरापगा, (स्त्री.) गङ्गा | स्वरित, (त्रि.) स्वर वाला स्वस्ति स्वरु, ( पं . ) पत्र | यज्ञीय स्तम्भ का इकड़ा, तीर | सूर्य की किरण विभेद | स्वरुचि, (नि.) स्वातन्य | स्वतन्त्रता | स्वरूप, (ग) अपना पदार्थ (पुं. ) जानने वाला । पण्डित । ( त्रि. ) मनोहर | • स्वरूपसम्बन्ध, (पुं.) अपने रूप का सम्बन्ध | स्वरोदय, ( पुं. ) एक विद्या जिससे नाक की श्वास द्वारा भावी शुभाशुभ का ज्ञान हो जाता है। स्वर्ग, (पुं. ) बड़े सुख का स्थान | देवताओं का लोक | स्वर्गनाथ, ( पुं. ) स्त्र | स्वर्गवधू, (स्त्री.) स्वर्गलोक की सियाँ इन्द्राणी श्रादि । स्वर्गाचल, (पुं. ) सुमेरु पर्वत । स्वर्गिन ( पुं. ) देवता (त्रि. ) स्वर्गवासी | स्वर्ण, (न.) कांचन | सोना | धतूरा | नागकेसर | स्वर्णकाय, (पुं. ) गरुड । स्वर्णकार, (पु. ) सुनार स्वर्णदी, ( सी. ) गङ्गा । स्वर्भानु, ( पुं. ) राहु | स्वर्लोक, ( पुं. ) स्वर्ग स्वर्वापी, ( स्त्री. ) गङ्गा । स्वर्वेश्या, ( श्री. ) मेनका यादि श्रप्सरायें। स्वल्प, (त्रि. बहुत थोड़ा । क्षुद्र | स्ववासिनी, ( श्री. ) पिता के घर में चिर काल तक रहने वाली स्त्री । स्वस, ( स्त्री ) वहिन । स्वस्ति, ( [अव्य. ) दोम | कल्याण | श्राशीर्वाद । स्वस्तिक, ( पुं. न.) कल्याणप्रद घर विशेष | श्रासन भेद | द्रव्य विशेष | छः पद का चित्र विशेष स्वस्तिवाचन, (न. ) ब्राह्मण द्वारा महल- . पाठ । स्वस्तिवाचनिक, ( त्रि. ) मङ्गलपाठ का माधन | आशीर्वादग्रहण की सामग्री
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