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पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४३४

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सूर्यग्रहणाधिकारः ४१७ घटिकाभिर्गुणिताः षष्टया भक्ता लब्धकलाभिर्यदि लम्बनमृणं तदा गणितागत दर्शान्तकालिका रविचन्द्रपाता ऊनाः (हीनाः) कार्याःयदि लम्बन धनं तदा लब्ध कलाभिर्गणितदर्शान्तकालिका रविचन्द्रपाता युक्ताः कार्यास्तदा स्पष्टदशन्तकालिका रविचन्द्रपाता भवन्तीति ॥ ७ ॥ गणितागतदशन्तकालिकरविचन्द्रपातेभ्यः शरादिक' सर्वमानेतव्यम् । ऋणात्मके लम्बने "षष्टिघटिकाभिः पृथक् पृथक् रविचन्द्र पातगतिला लभ्यन्ते तदा लम्बनघटिकाभिः किमित्यनुपातेन ' लब्धकलाभिर्गणितागतदशन्तकालिका रविचन्द्र पाता हीनाः कार्याःधनात्मके लम्बने लब्धकलाभिस्ते युक्तास्तदा ते स्पष्ट दर्शान्तकालिका भवेयुरेवेति, सिद्धान्त शेखरे “गतिं हतां लम्बननाड़िकार्भािवभज्य षष्ट्या फललिप्तिकाभिः। रवीन्दुपाताः सहिता धनाख्ये विजताश्व क्षयलम्बने ते” ऽनेन श्रीपतिनाऽचार्योक्तानुरूपमेवोक्तमिति । । ७ । अब स्पष्ट दर्शान्तकाल में रवि चन्द्र और पात के चलन को कहते हैं। हेि. भा.-रवि, चन्द्र और पात की गति कला को लम्बन घटी से गुणा कर साठ ६० से भाग देने से जो लब्ध कला हो उसको लम्बन ऋण रहने से गणितागत दर्शान्त कालिक रवि, चन्द्र और पात में से हीन करना, और घनात्मक लम्बन में गणितागत रवि, चन्द्र और पात में लब्धकला को जोड़ना तब स्पष्ट दर्शान्तकालिक रवि, चन्द्र और पात होते हैं इति ।। ७ ॥ उपपत्ति । गणितागत दर्शान्त कालिक रवि, चन्द्र और पात से शर आदि सब कुछ लाना चाहिये, ऋणात्मक लम्बन रहने से ‘साठ घटी में पृथकू पृथक् रविगतकला, चन्द्रगतिकला और पातगति कला पाते हैं तो लम्बन घटी में क्या इस अनुपात से जो लब्घ कला हो उनको गणितागत दर्शान्तकालिक रवि, चन्द्र और पात में से हीन करना, धनात्मक लम्बन रहने से लब्धकला को उनमें (गणितागत दर्शान्त कालिक रवि, चन्द्र और पात) जोड़ देना तब स्पष्ट दर्शान्तकालिक रवि, चन्द्र और पात होते हैं, सिद्धान्त क्षेखर में ‘गति हतां लम्बन नाट्टिकाभि' रित्यादिसंस्कृतोपपत्ति में लिखित पद से श्रीपति ने आचार्योंक्त के अनुरूप ही कहा हैं इति ॥ ७ ॥ इदानीं वित्रिभनतांशानां नतेर्वादिग्लानार्थमाह अक्षज्याया वित्रिभलग्नात् स्वशान्तिरुत्तराऽर्कस्य । इन्दोर्वा यत्रधिकाऽवनतिः सम्यऽन्यथा याम्या ॥ ८ ॥