सामग्री पर जाएँ

पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/४२४

विकिस्रोतः तः
एतत् पृष्ठम् अपरिष्कृतम् अस्ति

४०७ तदनन्तर वित्रिभ की चरासु से . ‘दिनगतशेषाल्पस्य' इत्यादि विधि से वित्रिममाइकु का साधन करना चाहिये २-३॥ उपपति लग्नोत्पन्न नवत्यंशवृत्त (दृक्षेपवृत्त) अन्तिवृत्त में जहां सगता है वही वित्रिभलग्न है, वित्रिभलग्न के बराबर रवि के रहने से स्पष्टलम्वनाभात्र होता है, रवि के ऊपर और लम्बित रवि के ऊपर कदम्बप्रोतवृत्तद्वय कान्तिवृत्त में जहांजहां लगता है तदन्तर्गत क्रान्तिवृत्तीय चाप (वि से लम्बित रविस्थान पर्यन्त) रवि का स्पष्ट लम्बन है, परन्तु वित्रिभस्थान में रवि के रहने से उसके ऊपर दृग्वृत तथा रवि के ऊपर और लम्बित रवि के ऊपर कदम्ब श्रोतवृत्त एक ही वृक्ष पवृत्त होता है इसलिये वहां स्पष्ट लम्बनाभाव होता है, अतः "वित्रिभलग्नसमेऽङ्कन लम्बनम्” यह आचायत युक्ति-युक्त है इति । गर्मीयामान्तकाल में स्थानाभिप्रायिक रवि और चन्द्र एक ही विन्दु में होते हैं, इसलिए एक ही दृवृत्त में लम्बितरवि और लम्बित चन्द्र होते हैं, लम्बित रवि से लम्बितचन्द्र पृष्ठ में लम्बित होते हैं इसलिए वित्रिभ से रवि के अल्प रहने पर लम्बित रद्युपरिगत कदम्बनोतवृत कान्तिवृत्त में जहाँ लगता है उससे अधोभाग में लम्बितचन्द्रपरिगत कदम्बश्रोत वृत्त क्रान्तिवृत्त में लगेगा इसलिए यहां शीघ्रगतिग्रह (लम्बितचन्द्रस्थान) से मन्दगतिग्रह (लम्बितरविस्थानं ) के आगे रहने के कारण युति गम्य होती है अतः गर्मीयामान्त से पृष्ठीया मान्त स्पष्टलम्बनान्तर कर के पश्चात् होता है इसलिये गर्मीयामन्तकाल में स्पष्टलम्बना- न्तर जोड़ने से पृष्ठीयामान्तकाल होता है, वित्रिभ से रवि के अधिक रहने पर लम्बित रवि से लम्बितचन्द्र अधोभाग में होते हैं, इसलिये लम्बित रद्युपरिगत कदम्बप्रोतघृत और क्रान्तिवृत्त के सम्पात से लम्बितचन्द्रोपरिगतकदम्बप्रोतवृत्त पर फ्रान्तिवृत्त का सम्पात ऊपर होता है अतः मन्दगतिग्रह (लम्बित रविस्थान) से शास्रगतिग्रह (लम्बित-चन्द्र स्थान) के आगे रहने के कारण युति गत होती है, इसलिये गर्भायामान्त काल में स्पष्टलम्बनान्तर को ऋण करने से पृष्ठीयामान्तकाल होता है प्रतः 'तदधिकोनके भवति’ यह आचायत युक्ति युक्त है, यह संस्कृतोपपतिस्थ (क) क्षेत्र को देखिये. ॥२-३। अब नति के सम्बन्ध में विचार करते हैं यहां संस्कृतोपपत्तिस्थ () क्षेत्र को देखिये, च=खस्वस्तिक, वि=वित्रिभ, र= अन्तिवृत्त में रवि, लंर=लम्बित रवि, संरस्क=लम्बित रविस्थान, रवि से सम्बत रवि स्थान पर्यन्त ह्रसम्बन है, लम्बित रवि से लम्बितविस्थात पर्यंत रवि की नति है, रवि से लम्बित रविस्थान पर्यन्त रवि का सष्टसम्बन है, खर रविनतांश, ऋवि=इओ - चाप, विर, तथा दुम्सम्बनतिस्पष्टसम्बनोत्पन्ल पीनवृत्य त्रिभुवा न ब्धात्र सजातीब है इसलिये अनुपात करते हैं यदि इंग्लंघा में हुत्र पतेि हैं तो हम्बनया में