३७६ ब्राह्मस्फुटसिद्धान्ते Vझर्च'चर-धूर =’मानैक्यार्ध-स्पाशिक्शर=स्थित्यर्धकला, ततोऽनु पातेना ‘यदि रविचन्द्रयोर्गत्यन्तरेण षष्टि घटिका लभ्यन्ते तदा स्थित्यर्धकलायां किमित्य' नेन समागच्छन्ति स्थित्यर्ध घट्यः = ६०xस्थिई कला , तथा भूचश गत्यन्तर कला गत्यन्तर कॅल त्रिभुजे 'भूचं’ -चंश' =श=/मानार्थान्तर'-संमोलनकालिकशर ' = विम दधिकला, ततः पूर्ववदनुपातेन विमदर्पिषयः = ६९xविसर्जिकला स्पाशिक संमीलन कलिकशरयोरज्ञानाद्विदितमध्यग्रहणकालिकशरवशेनैव स्थि त्यर्घविमर्दीर्घयोरानयनं कृतं तन्न युक्तम् । सिद्धान्तशेखरे "मानार्थसंयोग वियोगवर्णं विक्षेपकृत्या रहितौ विधाय। ये शेषमूले तिथिवत् कृते ते क्रमाद् भवेतां स्थितिमदं खण्डे” श्रीपतेः श्लोकश्चायं, सिद्धान्तशिरोमणौ “मानार्थयोगान्तरयोः कृतिभ्यां शरस्य वर्गेण विवजिताभ्याम् । मूले खप ६० संगुणिते विभक्त भुक्तयन्तरेण स्थितिमर्दखण्डे” भास्कराचार्यस्यायं श्लोकश्चाऽऽचार्योक्तानुरूप एवेति । । ७ ।। अब ग्रासानयन को कहते हैं । हि. भान्ग्राह्म विम्ब और ग्राहक बिम्ब के योगाधं (मानैक्यार्ध) और अन्तरार्ध के वगों में से शर वर्ग को घटाकर मूल लेना तब उन दोनों को साठ से गुणा कर रवि और चन्द्र के गत्यन्तर से भाग देने से स्थित्यर्ध और विमर्दधे होते हैं इति ।। ७ ।। यहां संस्कृतोपपत्ति में लिखित (क) क्षेत्र को देखिये । भूभाबिम्ब और चन्द्र बिम्ब के बहिः स्पर्श काल में चन्द्र केन्द्रोपरिगत कदम्बश्रोतवृत्त और क्रान्तिवृत्त के सम्पात से भूभा केन्द्र पर्यन्त क्रान्तिवृत्त में स्थित्यर्ध कला है, चन्द्र केन्द्रोपरि गत कदम्ब प्रोत वृत्त और क्रान्ति वृत्त के सम्पात से चन्द्रकेन्द्र तक कदम्बश्रोतवृत्त में स्पाशिक शर हैं । एवं भूभाबिम्ब पर चन्द्रबिम्ब के अन्तःस्पर्श ( संमीलन ) काल में चन्द्र केन्द्रोपरिगत कदम्बप्रोतवृत्त और ान्तिवृत्त के सम्पात से भूभा बिम्ब केन्द्र पर्यन्त क्रान्ति वृक्त में विमर्दायें हैंकदम्ब कला , प्रोत वृत्त में चन्द्रकेन्द्र से फ्रान्तिवृत्त पर्यन्त अन्तःस्पर्शकालिक (संमीलनकालिक) शर हैं, चन्द्रकेन्द्र और भूभाकेन्द्र गतवृत्त कर देना, ई=मूभा विस्ब केन्द्र, चं=बहि:स्पर्शकालिक: (स्पालिक) चन्द्रकेन्द्र, चंर=स्पाशिकरभू=, अन्तःस्पर्शकालिक स्थित्यर्धकलाचं= (संमीलन कालिक) चन्द्रबिम्ब केन्द्र, चंश=संमीलन कालिकशर, शमू=विमर्दीर्घकला, न= स्पर्सी बिन्दु भृशं=चन्द्रबिम्ब और भूमा विम्ब के केन्द्रगत वृत्त में केन्द्रान्तरचंन=चन्द्रबिम्ब
पृष्ठम्:ब्राह्मस्फुटसिद्धान्तः भागः २.djvu/३९३
दिखावट