fत्रप्रताधिकारः ८१ पादम्योदयश्चरखंडनुल्यं खंडमनुचितं तिति । तावदयं मंडलमादः महल एवे देनि, विषुवन्मंडलप्रथमपादावशेषस्य द्वितीयपादेन सहितम्योदयनो यावान्लाल तावान् कर्कादिकभ्यापमंडलपादम्य तृतीयपादत्रनृर्थन्य प्रथमपादत्रद्वसना योग्य । गोलेप्येवं प्रदर्शयेदिति लग्नमृदयैः स्वैरित्यस्य प्रश्नस्योतमायांत्रयेशाह । वि. भा.-ते पूर्वप्रकागगता मेषादिराशिश्रयनिग्कोदयाः क्रमोन्क्रमन्थः. (क्रमस्या उक्रमस्याओं म्थाप्याः) यथाक्रमं कृमोकुमर्थाः वचनामृभिरुनचुना. मन्तो मेषादिषण् राशीनामुदयमाणुः (स्वदेशोदयासवः) भवन्ति, अत एव व्यना (विपरीताः) तुलादिषण्टां राशीनामुदय प्राण (स्वदेशोदयासवः) भवन्ति, अर्क तात्कालिकं कृन्वेत्यस्याने सम्बन्ध इति ॥ निरक्षस्वदेशाकदययोरन्तरं चरम् । मेषादिरेककालावच्छेदेन स्वदेशे निक्षे च ममुदेति, मेषान्तः प्रथमं स्वक्षितिजे ततः पश्चादुन्मण्डले लगत्यतश्चरखण्डन मेषोदयः स्वदेशोदयो भवति, वृषमिथुनयोरप्येवमेव, कक्षीदतु चरखण्डानामपवी. यमानत्वाद्धन तानि परिणमन्ति, तुलादौ तून्मण्डलस्य स्वक्षितिजादधः स्थितत्वान चरखण्डानि धनं भवन्ति, मकरादौ तु चरखण्डानामपचीयमानत्वादृणमिति । सिद्धान्त शिरोमए भास्कराचार्येण "कुमोत्कृमस्थाश्चर खण्डकैः स्वैः कुमोत्कूम म्यैश्च विहीन युक्तः । मेषादिषणामुदयाः स्वदेशे तुलादिमीच विलोम मंस्याः"प्यनेनाऽऽचायक्तानुरुपमेव कथ्यत इति ॥ १७ ॥ अब स्वदेशोदय साधन को कहते हैं। हेि. भा.- पूर्व प्रकार से आये हुए मेषादि तीन रासियों के निरओदेवमानों को कम से और उत्क्रम (जिसमसे स्थापित करना मया कम क्रमस्थित और उपस्थित अपनी परामु को हीन और मुत करने से मेशादि इः राशियों के स्वदेशजवामुमान होते हैं; इतने ही विपरीत तुलानि वः रासियों के प्रदेयौवयासु मान होते हैं : 'एक ताआनिलं संधा' इसका आपे से सम्बन्ध है इति ॥ १७ ॥ निरनकद और स्वदेशाफ्टब का अन्तर थर है, अपने देश में और निरत देश में मेषार्दिबिन्दु एक काल में उदित होता हैनैशान्तबिन्दु पहने अपने क्षितिज में आता है। उसके बाद पर कालान्तर में उभराडम में आता है इनए निरक्षरेणी मैचोपवमान में रे घर को घटाने में स्वदेशीय भेगोदयभान होता है, इसी तर वृष और मिथुन का भी होता है, यदि में वरत्रों के अपपौषणमनव (लाल) के कारण बन होते हैं।
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